शिवसेना एनसीपी टूटने से महाराष्ट्र में कांग्रेस होगी मज़बूत
कल महाराष्ट्र में जो सियासी ड्रामा हुआ उसकी बिसात कई महीनों से बिछाई जा रही थी। अलबत्ता इसका अंदाजा आम लोगों को नहीं था लेकिन एनसीपी प्रमुख शरद पवार को ज़रूर था इसी लिए उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को कार्याध्यक्ष बना दिया था। लेकिन प्रफ़ुल्ल पटेल उन्हें धोखा देकर पार्टी से बग़ावत करेंगे इसका अंदाजा शायद शरद पवार को भी नहीं था वर्ना वह प्रफुल्ल पटेल को पार्टी महासचिव हरगिज़ नहीं बनाते।
यह बात तो अब सभी को समझ में आ चुकी है कि राजनीति में कोई सगा नहीं होता, और राजनीति में रिश्ते नाते, विचारधारा कोई मायने नहीं रखती, राजनीति अपना पराया नहीं बल्कि फ़ायदा देखती है। कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जिन्हें राहुल गाँधी से मित्रता के कारण कांग्रेस में हमेशा महत्त्व दिया गया, वह कांग्रेस विधायकों को तोड़कर बीजेपी की सरकार बनवा देंगे।
और यही हाल महाराष्ट्र में हुआ जहां एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बग़ावत करके न सिर्फ़ महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की सरकार गिरा कर भाजपा सरकार बनवा दी बल्कि शिवसेना को दो हिस्सों में बाँट दिया। एक हिस्से के मालिक वह खुद बन गए और एक हिस्सा शिवसेना के लिए छोड़ दिया। उद्दव ठाकरे ने कल्पना भी नहीं की थी कि जिस नेता को उन्होंने इतना महत्त्व दिया और अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाया वह भी बग़ावत कर सकता है।
राजनीति में कोई अपना नहीं होता, और राजनीती में विचारधारा नहीं फ़ायदा देखा जाता है यह बात सियासी पार्टी के प्रमुख नेताओं को जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना अच्छा है। यह बात अगर सही ढंग से कोई समझा है तो वह हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। इसी लिए राजस्थान चुनाव जीतने के तुरंत बाद उन्होंने बीएसपी विधायकों को अपने दल में शामिल करवाकर अपना कुनबा बड़ा कर लिया, वर्ना वह भी आज राजस्थान मुख्यमंत्री की जगह पूर्व मुख्यमंत्री कहलाते।
अशोक गहलोत ने राजस्थान में केवल कांग्रेस सरकार बचाई नहीं है बल्कि आगामी विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की दोबारा सत्ता में वापसी की संभावना को मज़बूती प्रदान की है। शायद इसीलिए उन्हें राजनीति का जादूगर कहा जाता है। उन्होंने कांग्रेस की बग़ावत को किस तरह संभाला और आगामी विधान सभा चुनाव से पहले जनता की भलाई के लिए जो बिल लेकर आए हैं, वह उनके कुशल नेतृत्व को दर्शाता है।
अब बात करते हैं महारष्ट्र की जहाँ राज्य में पहला राउंड तो बीजेपी ने सत्ता की मलाई लूटकर ले ली है लेकिन लंबे समय में बीजेपी को इसका फायदा मिलेगा, ये अभी कहना कठिन है क्योंकि बीजेपी लगातार जिस तरह से महाराष्ट्र में प्रयोग कर रही है, मराठी अस्मिता को इससे धक्का लगा है और ये दाँव उल्टा भी पड़ सकता है।
राजनैतिक तौर पर अब एकनाथ शिंदे बीजेपी की मजबूरी नहीं रह गये हैं अब अजीत पवार के पास भी उतने ही विधायक हैं जितने शिंदे के। ऐसे में बीजेपी जो चाहे फ़ैसला कर सकती है। हो सकता है कि अब देवेंद्र फणनवीस दिल्ली जायें क्योंकि अजित पवार के साथ उनका क़द बहुत छोटा हो जायेगा। दिल्ली में अगले सप्ताह विस्तार हो सकता है जिसमें देवेंद्र फणनवीस और प्रफुल्ल पटेल मंत्री बन सकते हैं।
अब राजनीति पर असर ये कि मौजूदा सरकार में बीजेपी, एनसीपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना- तीनों में वर्चस्व की लड़ाई दिखेगी और बीजेपी को इसको संभालना कठिन होगा। अगर शरद पवार विरोध में रहते हैं और कांग्रेस तथा उद्धव का साथ देते हैं तो मराठाओं की सहानुभूति पवार के साथ ही जायेगी। इसके साथ ही एनसीपी के कमजोर होने का फायदा कांग्रेस को मिलेगा जो एनसीपी के हाथों अपनी खोयी अपनी जमीन वापस लेगी।
महाराष्ट्र की जनता के लिए कांग्रेस पार्टी अजनबी नहीं है। कांग्रेस ने लगातार वहां पर शासन किया है। विलासराव देशमुख, पृथ्वीराज चौहाण और अशोक चव्हाण वहां के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। खुद एनसीपी चीफ़ शरद पवार पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे।बाद में अलग होकर उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली। ऐसी सूरत में शिवसेना और एनसीपी के समर्थक वोटर और कार्यकर्ता जो पार्टी तोड़ने के कारण अजीत पवार और शिंदे गुट से नाराज़ हैं उनके पास अपनी नाराज़गी प्रकट करने के लिए एकमात्र विकल्प कांग्रेस ही है।


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