एक देश, एक चुनाव की अवधारणा संविधान की मूल संरचना के विपरीत: खड़गे
नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को एक राष्ट्र, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति के सचिव को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि कांग्रेस देश में एक साथ चुनाव कराने का विरोध करती है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि जिस देश में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई है, वहां एक साथ चुनाव की अवधारणा का कोई स्थान नहीं है। यह संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। अगर यह व्यवस्था लागू होती है तो संविधान के मूल ढांचे में बदलाव करना होगा।
दरअसल, देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति बनाई गई है। इसमें 8 सदस्य हैं। 18 अक्टूबर 2023 को समिति ने इस मुद्दे पर कांग्रेस से सुझाव मांगे। 17 जनवरी को खड़गे ने समिति सचिव नितिन चंद्रा को 4 पेज का पत्र लिखकर जवाब दिया। इसमें 17 प्वॉइंट्स हैं। कांग्रेस का कहना है कि लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए एक साथ चुनाव कराने का विचार छोड़ना और हाई पावर कमेटी को भंग करना जरूरी है।
खड़गे की चिट्ठी की अहम बातें:
वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर जो हाई लेवल कमेटी बनी है, वह पक्षपातपूर्ण है, क्योंकि इसमें विपक्षी दलों का कोई प्रतिनिधि नहीं है। एक साथ चुनाव को लेकर सरकार पहले ही अपने विचार व्यक्त कर चुकी है। वह देश में ऐसे ही चुनाव कराना चाहती हैं। ऐसे में इस संबंध में कमेटी बनाना महज दिखावा है, क्योंकि समिति के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द हैं। 2018 में उन्होंने संसद में कहा था कि बार-बार चुनाव कराने से विकास कार्य रुक जाते हैं।
कांग्रेस कहना चाहती है कि कोई प्रगति नहीं हो रही है क्योंकि पीएम मोदी काम करने के बजाय चुनाव कराते रहते हैं। समिति का मानना है कि अगर एक साथ चुनाव होंगे तो खर्च बच जाएगा, ये बिल्कुल निराधार है। 2014 के लोकसभा चुनाव में 3,870 करोड़ रुपये खर्च हुए, जो समिति का दावा है कि यह बहुत अधिक है। इसके विपरीत, भाजपा को 2016-2022 के दौरान 10,122 करोड़ रुपये का दान मिला, जिसमें से 5,271.97 करोड़ रुपये बेनामी बांड हैं। यदि समिति और सरकार वाकई चुनाव खर्च को लेकर गंभीर है तो चुनावी बांड की प्रक्रिया को पारदर्शी बनायें।
आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य प्रभावित होने का तर्क भी निराधार है, क्योंकि चुनाव के दौरान पहले से मौजूद योजनाएं और मंसूबे जारी रहते हैं। एक साथ चुनाव कराने के लिए कई विधान सभाओं को भंग करने की आवश्यकता होगी जो अभी भी अपने कार्यकाल के आधे (या उससे कम) हैं। यह इन राज्यों के मतदाताओं के साथ विश्वासघात होगा। सरकार ने सितंबर 2023 में एक समिति बनाई है। केंद्र सरकार ने 2 सितंबर को इस समिति का गठन किया है।
समिति की पहली बैठक 23 सितंबर को दिल्ली के जोधपुर ऑफिसर्स हॉस्टल में हुई थी। इसमें गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद समेत 8 सदस्यों ने हिस्सा लिया था। समिति ने अपनी पहली बैठक में इस मुद्दे पर देश के राजनीतिक दलों की राय लेने का फैसला किया था। इसके लिए समिति ने देश के 46 राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर उनकी राय मांगी थी। इसमें 6 राष्ट्रीय दल, 33 राज्य स्तरीय दल और 7 गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं।
बता दें कि भारत में राज्य विधानसभा और देश की लोकसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हों। यानी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए मतदाता एक ही दिन, एक ही समय या चरणों में वोट डालते हैं। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए। लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। फिर 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। जिससे एक देश, एक चुनाव की परंपरा टूट गयी।


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