चिदंबरम ने जामिया हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जामिया हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट को संबोधित करते हुए कानून के शोषण को रोकने की मांग की है। जामिया नगर हिंसा मामले में शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा और सफ़ूरा ज़रगर सहित 11 आरोपियों को दिल्ली की अदालत से बरी किए जाने के एक दिन बाद वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली जो पूर्व-परीक्षण कारावास देती है, भारत के संविधान विशेष रूप से अनुच्छेद 19 और 21 का अपमान है।
सुप्रीम कोर्ट को इस कानून द्वारा प्रतिदिन होने वाले दुरुपयोग को जितनी जल्दी हो सके रोकना चाहिए ताकि इस क़ानून का दुरुपयोग न हो सके और इसके द्वारा देश के युवाओं को परेशान न किया जा सके। गौरतलब है कि दिल्ली की अदालत ने जामिया हिंसा मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि पुलिस ने उन सभी को बलि का बकरा बनाया है और यह भी कहा कि असहमति कोई गलत चीज नहीं है, यह भारत के संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का एक प्रकार से विस्तार है।
इसके साथ ही कोर्ट ने तमाम आरोपियों को यह कहते हुए बाइज़्ज़त बरी कर दिया कि उन्हें बलि का बकरा बनाया गया है जबकि दिल्ली पुलिस अस्ल मुजरिमों को पकड़ने में असफल रही है। न्यायमूर्ति अरुल कुमार की इसी टिप्पणी पर आगे बढ़ते हुए, चिदंबरम ने कहा कि देश में असहमति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, और इसे बढ़ावा देने और चर्चा करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। इसे कुचलने का बिल्कुल भी प्रयास नहीं होना चाहिए।
चिदंबरम ने ट्वीट कर पूछा, ”दिल्ली ट्रायल कोर्ट ने जो देखा है वह यह है कि जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम और 10 अन्य को बलि का बकरा बनाया गया था। क्या आरोपियों के खिलाफ सबूत थे? उन्होंने कहा कि कुछ आरोपी करीब 3 साल से जेल में बंद हैं। कुछ को कई माह बाद जमानत मिली।
मुकदमे से पहले नागरिकों को जेल में रखने के लिए अक्षम पुलिस जिम्मेदार है। उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी? अभियुक्तों ने जो समय जेल में बिताए उन महीनों या वर्षों का भुगतान कौन करेगा? पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के मुताबिक इस फैसले और इससे पहले सीएए मामले ने पुलिस और प्रशासन की क़लई खोल है।