केंद्र सरकार का हलाल मांस निर्यात को बढ़ावा देने का निर्णय
भारत सरकार ने भारत से मांस निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला किया है, जिसके तहत देश में हलाल प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जा रहा है। एक तरफ गौ रक्षकों द्वारा बीफ पर रोक लगाने के लिए हिंसक अभियान जारी है, वहीं मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था और आय को ध्यान में रखते हुए हलाल मांस निर्यात को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है।
सरकार का यह फैसला शायद गौ रक्षकों के हित में नहीं होगा। हिंदुत्व ताकतों ने हलाल प्रमाणपत्र के खिलाफ भी बड़े पैमाने पर विरोध किया है। देश के कुछ राज्यों में हलाल खाद्य पदार्थों के खिलाफ अभियान पर स्थानीय सरकारों ने दबाव के तहत हलाल खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध लगा दिया है। हिंदुत्व समर्थकों का मानना है कि हलाल मांस वास्तव में अल्लाह के नाम पर ज़िबह किया जाता है और इस्लामिक तरीके से जानवरों का ज़िबह करना हिंदुओं के लिए स्वीकार्य नहीं है।
केंद्र सरकार ने डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (DGFT) के माध्यम से एक नोटिफिकेशन जारी किया है। 1 अक्टूबर को जारी किए गए इस नोटिफिकेशन में मांस और मांस उत्पादों के लिए हलाल प्रमाणपत्र की प्रक्रिया को नियमित करने से संबंधित बातें कही गई हैं। सरकार मांस और मांस उत्पादों को हलाल प्रमाणपत्र के साथ 15 देशों को निर्यात करने की अनुमति दे रही है।
हलाल मांस और उससे बने उत्पादों को भारतीय संगतता आकलन योजना के तहत प्रसंस्करण और पैकेजिंग के चरण को पूरा करना होगा। शिपमेंट के साथ निर्यातक को हलाल से संबंधित प्रमाणपत्र खरीदार को उक्त देशों में प्रस्तुत करना होगा। केंद्रीय संस्था की इस आकलन योजना के तहत हलाल प्रमाणपत्र को क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा जारी किया जाएगा।
डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आता है, जिसके अनुसार 15 देशों की सूची में 13 मुस्लिम देश शामिल हैं। मुस्लिम देशों ने भारत से मांस और अन्य खाद्य पदार्थों के निर्यात के लिए हलाल प्रमाणपत्र को अनिवार्य किया है। भारत में कई निजी संस्थाएँ, ट्रस्ट और स्वैच्छिक संगठन हलाल प्रमाणपत्र जारी करती हैं, जिनमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद, हलाल ट्रस्ट और हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं। इनके प्रमाणपत्र के बाद ही मुस्लिम देशों को मांस और खाद्य सामग्री भेजी जा सकती हैं।
हलाल प्रमाणपत्र जारी करने वाले संस्थान अंतर्राष्ट्रीय हलाल मान्यता मंच में पंजीकृत हैं, जो विश्व हलाल खाद्य परिषद के तहत खाद्य सामग्री की गुणवत्ता और उनके हलाल होने को सुनिश्चित करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि भारत से हलाल मांस उत्पादों के निर्यात में ज्यादातर गैर-मुस्लिम व्यापारी शामिल हैं। मुसलमानों को केवल जानवरों के ज़िबह से लाभ होता है, जिसकी फीस का निर्धारण सरकार करती है। वैश्विक स्तर पर हलाल खाद्य पदार्थों का व्यापार 2027 तक 3.9 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना है।
दुनिया भर में हलाल उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। गैर-मुस्लिम देशों जैसे फिलीपींस और सिंगापुर ने भी मांस उत्पादों के निर्यात के लिए हलाल प्रमाणपत्र को अनिवार्य कर दिया है। हलाल प्रमाणपत्र का मतलब शरीयत के अनुसार और इस्लामी तरीके से खाद्य पदार्थों का निर्माण होता है। हलाल मांस का मतलब इस्लामी तरीके से ज़बह करना और उसकी पैकिंग करना है। शरीयत के अनुसार जानवर को गले से ज़िबह किया जाता है और इस्लामी तरीके से ज़िबह में “झटका” की कोई गुंजाइश नहीं है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2023 में हलाल प्रमाणन को एक वैकल्पिक प्रणाली के रूप में पेश करने की कोशिश की। इस अवसर पर हलाल प्रमाणपत्र जारी करने वाले कुछ संस्थानों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए, जिनमें हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई, जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट दिल्ली, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया मुंबई, जमीयत उलेमा महाराष्ट्र और अन्य संस्थाएँ शामिल हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हलाल खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध की मुखालफत करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने यूपी सरकार के आरोपों को बेबुनियाद बताया और कहा कि वे कानूनी कार्रवाई के जरिए इस भ्रामक प्रचार का सामना करेंगे।
नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में हलाल प्रमाणपत्र जारी करने की प्रणाली को नियमित करने का निर्णय लिया है, जिससे भारत से मांस और उससे निर्मित उत्पादों के निर्यात में वृद्धि होगी। अब देखना यह है कि, केंद्र सरकार के इस फैसले पर लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती है।