बीजेपी के लोग ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, जैसे हिंदुत्व का ठेका उन्हीं के पास है: सामना
भाजपा ने अयोध्या के राम मंदिर की राजनीति को बेहद विकृत मोड़ पर पहुंचा दिया है। यह हमारी संस्कृति को शोभा नहीं देता। भाजपा के लोग ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, जैसे हिंदुत्व का ठेका उन्हीं के पास है और राम मंदिर के सात बारह पर उनका ही नाम है। लेकिन राम मंदिर निर्माण होते-होते यह साफ हो गया है कि ‘रामराज्य’ रसातल में चला गया है। अगर हम महाराष्ट्र की ही बात करें तो राज्य में किसानों की आत्म हत्याओं ने सह्याद्रि की पहाड़ियों और घाटियों को आंसुओं से भिगो दिया है। अकेले यवतमाल जिले में ही ४८ घंटे के भीतर छह किसानों ने आत्महत्या कर ली।
पश्चिम विदर्भ में एक साल में सवा हजार किसानों ने आत्महत्या की। ऐसे घृणित शासन करने वाले लोग श्री राम मंदिर उत्सव की राजनीतिक घंटियां बजाते फिर रहे हैं। महाराष्ट्र में आए दिन किसान, बेरोजगार आत्महत्या कर रहे हैं और शायद इसी बड़ी उपलब्धि के लिए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र भाई फडणवीस को ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि से सम्मानित किया जा रहा है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, जापान के एक विश्वविद्यालय ने सामाजिक समानता के लिए उनके कार्य को देखते हुए उन्हें यह ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि प्रदान की है।
राज्य में सामाजिक समानता और प्रगतिशील सोच के चीथड़े उड़ रहे हैं। मौजूदा वक्त में मराठा, ओबीसी और अन्य समुदायों के बीच टकराव के कारण स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई है। इसके पीछे किसका दिमाग और किसके खोखे हैं, ये महाराष्ट्र जानता है। अब देवेंद्र फडणवीस के आगे ‘डॉ.’ की उपाधि लगेगी।
पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिंदे को भी किसी संस्था ने उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए ‘डॉ.’ की पदवी दी। लेकिन महाराष्ट्र में मौजूदा सरकार के दौरान तीन हजार से ज्यादा किसानों के नाम के आगे ‘स्व.’ की उपाधि लगी है। उनके घर- बार उजड़ गए। कुटुंब अनाथ और असहाय हो गए। इस मसले पर सरकार के ‘डॉ.’ कुछ नहीं बोलते। विदर्भ में किसानों की जिंदगी मरघट में बदल गई है और वहां कश्मीर घाटी में सैनिकों की चिताएं जल रही हैं, लेकिन यहां डॉ. फडणवीस और अन्य लोग अपनी पिचकी जांघें थपथपाकर कह रहे हैं, ‘राम मंदिर की लड़ाई में शिवसेना का क्या योगदान है?
हिम्मत है तो अयोध्या आओ, तुम्हारी छाती पर मंदिर खड़ा किया गया है।’ राम का अर्थ है संयम। राम का अर्थ है सुस्वभाव, लेकिन इन लोगों ने संयम की ऐसी-तैसी कर दी है। जो लोग, जब अयोध्या की लड़ाई चल रही थी और शिवसैनिक बाबरी पर निर्णायक प्रहार कर रहे थे, तब मैदान छोड़कर भाग गए थे, वे रणछोड़दास अब ‘साहस दिखाएं’ का ताव दिखाते हैं तब आश्चर्य होता है। क्या राम मंदिर आपकी निजी संपत्ति है? ऐसा सवाल पूछने पर फडणवीस आदि लोगों को ‘मिर्ची’ लगने की कोई वजह नहीं थी, लेकिन सवाल खरा और तीखा था इसलिए उन्हें लग गई।
प्रभु श्रीराम की उंगली पकड़कर विष्णु के १३वें (भाजपा कृत) अवतार मोदी राम मंदिर की ओर निकल पड़े हैं, ऐसी पोस्टरबाजी हिंदुओं को मंजूर नहीं। क्या मोदी श्रीराम से भी बड़े हो गए हैं? अगर कोई और ऐसा पोस्टर छापता तो ‘हिंदुत्व का अपमान हुआ है’ का स्यापा करते हुए भाजपा सड़कों पर घंटियां और थालियां बजाती। लेकिन मोदी राम मंदिर की ओर निकले हैं और राम ने उनकी उंगली पकड़ी है, यह तस्वीर भाजपा को परेशान नहीं करती।
राम मंदिर के लिए सैकड़ों कारसेवकों ने अपना बलिदान दिया है और कई अज्ञात कारसेवक सीने पर गोलियां झेलकर सरयू की तलहटी में बैठे तपस्या कर रहे हैं। उनका कुछ योगदान ये लोग मानेंगे कि नहीं? लालकृष्ण आडवाणी ने श्रीराम मंदिर के लिए अयोध्या रथ यात्रा नहीं निकाली होती और उन्होंने जो अग्नि जलाई, उसमें अशोक सिंघल, विनय कटियार, हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे ने संघर्षमय समिधा नहीं डाली होती तो आज का राम मंदिर खड़ा नहीं होता, लेकिन भाजपा ने उन्हें भुला दिया।
राम मंदिर की लड़ाई के बाद मुंबई में भड़के दंगों में हिंदुओं की रक्षा करने वाली शिवसेना का राम मंदिर में क्या योगदान है? ऐसा पूछने वाली संतान शुद्ध हिंदू नहीं हो सकती। जो लोग बाबरी का गुंबद ढहते समय भाग खड़े हुए थे, वे आज हिंदुत्व आदि बनकर घूम रहे हैं और इस ढोंग को देखकर गंगा, यमुना, गोदावरी, सरयू भी स्थिर हो गई हैं।