बीबीसी और विवादित डॉक्यूमेंट्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री, जिसकी स्क्रीनिंग को भारत सरकार ने बैन कर दिया था अभी तक चर्चा में हैं, और थोड़े थोड़े समय पर इसके बारे में कोई नया बयान, और कोई नया विवाद सुनने को ज़रूर मिलता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री की स्कीनिंग पर बैन सही है या ग़लत? या कितना सही है और कितना ग़लत? यह तय करना कोर्ट का काम है। लेकिन कुछ प्रश्न सभी के मस्तिष्क में ऐसे ज़रूर उभर रहे हैं जो बीबीसी की निष्पक्षता को संदेहास्पद बना देते हैं।
वह प्रश्न यह है कि अगर बीबीसी को गुजरात दंगे पर कोई डॉक्यूमेंट्री बनानी ही थी तो इतने सालों तक किस बात का इंतेज़ार था? गुजरात दंगा 2002 में हुआ था जिसमें जानी माली नुक़सान बहुत हुआ, लेकिन इतने समय गुज़र जाने के बाद जब ज़िन्दगी दोबारा पटरी पर लौट आई है, और लोग अपने दुखों और अपने ऊपर हुए अत्याचार को दुःस्वप्न समझकर भूल चुके हैं, उनके ज़ख्मों को पुनः ताज़ा करने और कुरेदने के लिए बीबीसी को डॉक्यूमेंट्री बनाने की ज़रुरत क्यों पड़ी ?
अगर बीबीसी को डॉक्यूमेंट्री बनानी ही थी तो गुजरात दंगे के फ़ौरन बाद क्यों नहीं बनाई? अब जबकि अदालत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी है और अधिकतर आरोपी बरी हो चुके हैं तो फिर इतना लम्बा अरसा गुज़र जाने के बाद आख़िर बीबीसी को डॉक्यूमेंट्री बनाने की ज़रुरत क्यों पड़ी ? क्या यह बीबीसी का दूसरे देशों के आतंरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं है? और क्या बीबीसी ने सभी देशों के नेताओं, राष्ट्रपति, और प्रधान मंत्री के ऊपर निष्पक्ष रूप से डॉक्यूमेंट्री बनाई है?
यह प्रश्न इस लिए भी उठ रहे हैं ताकि यह समझा जा सके की बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को क्यों विवादित और आंतरिक हस्तक्षेप माना जा रहा है। क्योंकि अगर ध्यान दिया जाए तो बीबीसी का मुख्यालय लंदन में ब्रॉडकास्टिंग हाउस है; लंदन और यूके के आसपास स्थित कई अन्य डिवीजनों के साथ। 2007 के बाद से बीबीसी सैल्फोर्ड में MediaCityUK में एक महत्वपूर्ण आधार विकसित कर रहा है, जिसमें उसने कई विभागों को स्थानांतरित कर दिया है।
इसी लिए बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री अधिकतर ग़ैर यूरोपीय देशों के विरुद्ध ही होती है जबकि यूरोपीय देशों के विरुद्ध बहुत कम। उदहारण के तौर पर दो साल पहले जब ईरान में “सलाम फ़रमान्दे ” गीत सभी बच्चों की ज़ुबान पर था, उस वक़्त बीबीसी ने पूरी दुनियां को यह बताया था कि इस गीत के लिए ज़बरदस्ती बच्चों की भीड़ जमा की जाती है, हालांकि यह गीत राजनीतिक नहीं, बल्कि धार्मिक गीत था।
2020 के चुनाव में नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन को जीत का सर्टिफ़िकेट न मिल सके इसके लिए निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों की भीड़ ने वॉशिंगटन के कैपिटल हिल इलाक़े पर धावा बोल दिया था और यह भीड़ वहाँ मौजूद पुलिस से भिड़ गई।
भीड़ सीनेट कक्ष तक पहुँचने में सफल रही जहाँ कुछ ही मिनट पहले चुनाव परिणाम घोषित किये गए थे। आधिकारिक रूप से यूएस कैपिटल हिंसा में चार लोगों की मौत हुई थी इनमें से एक ‘ट्रंप-समर्थक’ महिला को पुलिस ने मौक़े पर ही गोली मार दी थी, जिसकी मौत अस्पताल ले जाते समय हुई। पुलिस का कहना है कि बाकी तीन लोगों की मौत ‘मेडिकल इमर्जेंसी’ के चलते हुई, लेकिन क्या बीबीसी ने इसके ऊपर डॉक्यूमेंट्री बनाने का साहस दिखाया?
कोरोना वायरस के बीच अमेरिका में अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद देश के कई हिस्सों में हिंसा फैल गई है। मिनियापोलिस के अलावा फ्लोरिडा, जैक्सनविल, लॉस एंजेलिस, पीटसबर्ग, न्यूयॉर्क समेत कई जगहों पर प्रदर्शनकारी प्रदर्शन कर रहे थे। हॉलीवुड सितारों ने भी लगातार इस घटना की निंदा की थी लेकिन क्या बीबीसी ने इस पर कोई डॉक्यूमेंट्री बनाई ? ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जो बीबीसी की संलिप्तता को संदेहास्पद बनाते हैं लेकिन इन सभी का जवाब नदारद है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।


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