बरेली: जज ने ‘लव जिहाद’ थ्योरी का समर्थन करते हुए मुस्लिम युवक को उम्रकैद की सजा सुनाई
उत्तर प्रदेश के बरेली की एक अदालत के जज ने 25 वर्षीय युवक और उसके पिता को एक 20 वर्षीय युवती को जबरन इस्लाम धर्म अपनाने और हिंदू पहचान के साथ शादी करने का दोषी ठहराया और उन्हें क्रमश: उम्रकैद और 2 साल की कैद की सजा सुनाई।
इस मामले में युवती के अपनी गवाही से मुकर जाने के बावजूद अदालत ने यह फैसला सुनाया। 19 सितंबर को युवती ने कहा कि उसकी पिछली गवाही झूठी थी और दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा उसके माता-पिता पर दबाव डाला जा रहा था। लेकिन अदालत ने युवती के बयान में बदलाव को आरोपी के प्रभाव से जोड़ा और इसे खारिज कर दिया।
फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज रवि कुमार दिवाकर ने कहा कि यह व्यक्ति “लव जिहाद” का दोषी है। जज के अनुसार, लव जिहाद बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे मामलों की तर्ज पर देश को कमजोर करने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से किया जा रहा है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि जज दिवाकर 2022 में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की अनुमति देने के लिए भी जाने जाते हैं।
‘लव जिहाद’ जैसे ल्शब्दों केा प्रयोग हिंदुत्व समूहों द्वारा किया गया है। उनका आरोप है कि यह मुस्लिम पुरुषों द्वारा एक संगठित प्रयास है जिसके तहत वे हिंदू महिलाओं को उनसे प्रेम करने और उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करते हैं। पिछले दशक में कई मामलों में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने लव जिहाद के आरोपों की जांच की और इन दावों को खारिज कर दिया था।
अदालत ने अपने फैसले में लिखा कि लव जिहाद के कार्य में भारी वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है, इसलिए इस मामले में विदेशी फंडिंग की संभावना है। जस्टिस दिवाकर ने सुनवाई के दौरान कहा कि लव जिहाद का मूल उद्देश्य जनसंख्या में परिवर्तन करना और अंतरराष्ट्रीय तनाव को बढ़ावा देना है। मूल रूप से, लव जिहाद धोखाधड़ी से विवाह कर गैर-मुस्लिम महिलाओं को इस्लाम धर्म अपनाने से जुड़ा हुआ है।
गौरतलब है कि 2024 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य में अवैध धर्म परिवर्तन (संशोधन) अधिनियम में नए कड़े प्रावधान पेश करने के बाद यह पहला न्यायिक फैसला है। इस मामले में एफआईआर बरेली के दिवोरनिया पुलिस स्टेशन में मई 2023 में दर्ज की गई थी। जज ने नए कानून के तहत आरोपी को दोषी नहीं ठहराया, लेकिन राज्य पुलिस प्रमुख, मुख्य सचिव और बरेली के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को अपने फैसले की प्रति भेजकर निर्देश दिया कि वे नए प्रावधानों के अनुसार मामला दर्ज करें।
उक्त मामले में मुकदमा एक महिला द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत पर चलाया गया था, जिसमें मोहम्मद आलम अहमद, उसके पिता साबिर आलम और परिवार के छह अन्य सदस्यों पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालने और शादी के बाद गर्भपात के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया गया है।