चाबहार पोर्ट के प्रबंधन के लिए भारत-ईरान के बीच आज एक अहम डील
नई दिल्ली: भारत आज एक अहम डील करने जा रहा है। भारत अगले 10 वर्षों के लिए चाबहार पोर्ट के प्रबंधन के लिए ईरान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने जा रहा है। व्यस्त चुनावी मौसम के बीच यह कदम को एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक पहुंच के रूप में माना जा रहा है, जिसके बड़े क्षेत्रीय प्रभाव होंगे। इससे साउथ एशिया से सेंट्रल एशिया के बीच ईरान के रास्ते एक नया ट्रेड रूट खिलेगा और पाकिस्तान के ग्वादर और कराची पोर्ट की अहमियत कम हो जाएगी।
ग्वादर में चीन का निवेश है। इस तरह पाकिस्तान के साथ-साथ चीन को भी इससे गहरा झटका लगेगा। पोर्ट, शिपिंग एंड वॉटरवेज मिनिस्टर सर्बानंद सोनोवाल इस समझौते पर हस्ताक्षर के लिए वायुसेना के एक विशेष विमान से ईरान रवाना हो गए हैं। यह पहली बार है, जब भारत किसी विदेशी बंदरगाह के प्रबंधन का काम अपने हाथों में लेगा। इससे भारत अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप से जुड़ पाएगा।
जानकारी के लिए बता दें कि इस समझौते के बाद भारत अगले 10 सालों तक चाबहार बंदरगाह का प्रबंधन संभालेगा। यह रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक कराची के साथ-साथ पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाहों को दरकिनार करते हुए, ईरान के माध्यम से दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के बीच एक नया व्यापार मार्ग खोलेगा। कनेक्टविटी के मामले में अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशियन क्षेत्रों के बीच चाबहार पोर्ट काफी अहम साबित होगा।
चाबहार पोर्ट ऑपरेशंस का अनुबंध इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती समुद्री पहुंच की एक और बड़ी उपलब्धि होगी। शिपिंग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने ठीक एक साल पहले -मई 2023 में म्यांमार में सिटवे बंदरगाह का उद्घाटन किया था। बता दें कि दोनों का ही उद्देश्य क्षेत्र में बढ़ती चीनी उपस्थिति को बेअसर करना है।
भारत का लक्ष्य सीआईएस (स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल) देशों तक पहुंचने के लिए चाबहार बंदरगाह को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के तहत एक ट्रांजिट हब बनाना है। INSTC भारत और मध्य एशिया के बीच माल की आवाजाही को किफायती बनाने का भारत का विजन है। चाबहार बंदरगाह इस क्षेत्र के लिए एक कमर्शियल ट्रांजिट सेंटर के रूप में काम करेगा।