ईडी; समझने वालों के लिए एक संकेत!
आज ईडी बहुत चर्चा में है, किसी न किसी नेता, या मंत्री, ईडी के नोटिस या समन, या कई घंटों और कई दिनों तक छापेमारी, पूछताछ और गिरफ्तारी की खबरें मीडिया की सजावट बन रही हैं। ईडी ने कई अच्छे और बड़े नेताओं को आरोपी के कटघरे में खड़ा कर दिया।
पिछले कुछ दिनों में मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक कानून जिसके तहत ईडी काम करता है, यानी ईडी की शक्तियों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के विरुद्ध दी गयी याचिका को खारिज कर दिया और उसकी शक्तियों को बरकरार रखा। ईडी यानी ईडी जो कुछ भी कर रही है वह संविधान और कानून के मुताबिक गलत नहीं है।
ईडी का अर्थ है प्रवर्तन निदेशालय। आर्थिक अपराधों और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन की जांच के लिए स्थापित एक बहु-क्षेत्रीय संगठन। इसकी स्थापना 1 मई 1956 को हुई थी। 1960 में इस निदेशालय का प्रशासनिक नियंत्रण आर्थिक मामलों के मंत्रालय से राजस्व विभाग को स्थानांतरित कर दिया गया था।
वर्तमान में राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में है। यह ईडी को केंद्र सरकार की अन्य जांच एजेंसियों से अलग करता है, जैसे कि सीबीआई, जो अपराधों की जांच के लिए केंद्रीय एजेंसी है। लेकिन केंद्र सरकार राज्यों की अनुमति के बिना मामलों को सीबीआई को नहीं सौंप सकता, जबकि ईडी पूरी तरह से केंद्र के कंट्रोल में है, इसे किसी भी जांच के लिए राज्य सरकारों से अनुमति की आवश्यकता नहीं है और पिछले कुछ वर्षों में, इसके संचालन में कई गुना वृद्धि देखी गई है। शायद इसीलिए इसकी शक्तियों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
कहा जाता है कि ईडी के कार्यों में यह वृद्धि वास्तव में मनी लॉन्ड्रिंग पर अंकुश लगाने के भाजपा सरकार के दृढ़ संकल्प को दर्शाती है। मुक़दमों की संख्या में वृद्धि के कुछ कारणों में पुराने मामलों की जांच और कई संदिग्धों और जटिल मनी लॉन्ड्रिंग मामलों की जांच शामिल है जिनमें अधिक तफ़्तीश की आवश्यकता होती है। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि जिन मामलों की छापेमारी, गिरफ्तारी और शोर-शराबे मीडिया में आएं, उनमें से अकसर मामलों को ईडी अदालत में साबित नहीं कर पाई है।
इसीलिए ईडी पर लगातार विपक्षी दलों के सदस्यों को अपनी पार्टी में शामिल होने या अपनी ही पार्टी का समर्थन करने के लिए विद्रोह करने के लिए सत्ताधारी दल द्वारा सरकार बनाने में मदद करने के लिए चलाए जा रहे एक ऑपरेशन होने का आरोप लगाया जा रहा है। इतनी तेज और सख्त कार्रवाई और हाल के दिनों में यह भी देखा जा रहा है कि जिस राज्य में विपक्ष द्वारा ईडी की कार्रवाई की जाती है, वहां सत्ताधारी दल में विद्रोह होता है और सरकार को उखाड़ फेंका जाता है।
यानी सरकार द्वारा तानाशाही या दबाव बनाने या सरकार विरोधी दलों की सरकारों को उखाड़ फेंकने या उनमें बगावत भड़काने के आरोप झूठे और निराधार नहीं हैं लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि ये नियमित कार्रवाई विपक्ष के आलावा किसी सत्तारूढ़ दल, उसके मंत्री या उसके किसी भी सहयोगी दल के नेता के विरुद्ध हुआ हो। यदि विपक्षी दलों के नेता जो भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाते हैं, जिनके खिलाफ ईडी ने कार्रवाई की है, अगर वह सत्तारूढ़ दल में शामिल हो जाते हैं, तो ऐसे नेताओं के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाई नहीं होती जब वे सत्ता पक्ष में आए,तो जैसे ही वे यहां आए, उनके भ्रष्टाचार साफ हो गए। ऐसे मामले भी हैं जिनमें ईडी की कार्रवाई के बाद, जब कोई नेता सत्ताधारी दल में शामिल हुआ, तो उसके खिलाफ कार्रवाई इतनी ढीली हो गई कि मानो रुक गई हो।
लोगों का कहना है कि पूर्व में राजनीतिक लाभ-हानि के लिए जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया गया है, लेकिन पिछले आठ वर्षों में जिस तरह से यह प्रवृत्ति एजेंडे के रूप में बढ़ी है, वह जांच एजेंसियों और लोकतंत्र की विश्वसनीयता के लिए चिंताजनक है। ईडी की कार्रवाइयों से यह निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि जिन मुखर विरोधियों के खिलाफ मुकदमा नहीं चल रहा है, वे वास्तव में सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि उसके सहयोगी हैंऔर वह अंदर ही अंदर सरकार के लिए काम कर रहे हैं। या फिर ऐसा न भी हो तो सरकार को इनसे किसी न किसी रूप में फायदा जरूर हो रहा है। यानी ईडी की हरकतें इस बात को समझने का एक संकेत हैं कि सरकार किसे अपने लिए खतरा मानती है। जो वास्तव में सरकार की नीतियों और उसकी विचारधारा का विरोध करते हैं।


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