नूपुर शर्मा को मिली अंतरिम ज़मानत का ज़िम्मेदार कौन?
पिछले कुछ दिनों से सत्तारूढ़ दल की महिला प्रवक्ता “नूपुर शर्मा” अपने निराधार और निंदनीय बयानों के कारण सुर्खियों में हैं और उनके विवादित बयान ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया, जिसके बाद देश भर में नूपुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, लेकिन भारतीय जनता पार्टी” की यह “बेशर्म प्रवक्ता” सुप्रीम कोर्ट के जज की कड़ी टिप्पड़ी के बाद भी पीछे नहीं हटी और अभी तक इसने सार्वजनिक रूप से क्षमा नहीं मांगा!
मालूम होना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के जज ने कुछ दिनों पहले नूपुर शर्मा की याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि आज देश में जो कुछ हो रहा है वह आपके बयानों के कारण हो रहा है, इसकी ज़िम्मेदार आप हैं। और आप ये सोचती हैं कि हम आपके सामने रेड कॉर्पेट बिछाएं। आपको अपने बयानों के लिए टेलीविज़न पर सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगना चाहिए। आपके बयान की वजह से पूरे देश में आग लगी हुई है, आपको पहले हाई कोर्ट जाना चाहिए था।
नूपुर शर्मा ने माफ़ी मांगने की जगह अपने ख़िलाफ़ दर्ज सभी एफआईआर को दिल्ली में इकट्ठा करने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका तो खारिज कर दी पर नूपुर और उनके वकील को खरी खरी सुनाते हुए गिरफ़्तारी पर रोक लगाकर फ़ौरी तौर पर राहत ज़रूर दे दी है।
हंगामा बढ़ा, समय गुज़रता गया गया और मुसलमानों में मूर्खतापूर्ण भावुकता पैदा हो गई, किसी ने नूपुर का सिर कलम करने का इनाम घोषित कर दिया तो किसी ने खुद ही इस काम का बेड़ा उठा लिया। और जब देश भर के “उत्साही” लोग ऐसा नहीं कर सके, तो पड़ोस के एक व्यक्ति को हमारी सीमा में “घुसपैठ” करने की परेशानी उठानी पड़ी। अवैध रूप से सीमा पार कर देश में प्रवेश करना स्वयं सीमा सुरक्षा बलों की योग्यता पर प्रश्नचिह्न है।
दूसरी बात रॉ जैसी ख़ुफ़िया एजेंसी को बताये बिना, नियमों का उल्लंघन करते हुए इस मामले को चर्चा में लाकर आरोपी को सामान्य पुलिस बल के हवाले कर दिया गया जो कि हैरान करने वाली बात है। भावुकता ,उकसावा और इस तरह के सभी मूर्खतापूर्ण कार्यों का परिणाम यह हुआ कि अदालत को अंततः इस बात का विश्वास हो गया कि नूपुर शर्मा की जान सचमुच खतरे में है और इस तरह सभी शिकायतों के खिलाफ अंतरिम जमानत दे दी, जिसके लिए मुसलमानों का उतावला पन,और गैर-जिम्मेदाराना रवैय्या ज़िम्मेदार है।
अगर हम कानून के दायरे में अपने अधिकारों के लिए लड़तें, तो उम्मीद थी कि इस बार झूठ का चेहरा बेनक़ाब हो जाता, लेकिन अफ़सोस कि अपनी भावुकता के कारण इस बार भी हम खुद ही अपना नुक़सान कर बैठे। मुसलमानों की प्रगति और गिरावट दोनों का कारण एक ही है। और वह है उनका तात्कालिक अति उत्साह! वह बाढ़ की तरह एक पहाड़ को उसके स्थान से हिला तो सकता है, लेकिन एक-एक करके पत्थरों को हटाकर रास्ता साफ नहीं कर सकता। एक मस्जिद की रक्षा में अपना खून पानी की तरह बहा सकता है, लेकिन एक नष्ट हुई मस्जिद के पुनर्निर्माण की कोशिश जारी नहीं रख सकता।
संक्षेप में कहें तो इस बार मुसलमान, मीडिया को, सुप्रीम कोर्ट को या हिंदुत्ववादी सरकार को दोष देकर खुद को नहीं बचा सकता। इस बार मुसलमानों ने अपने पैर में खुद कुल्हाड़ी मारी है। अगर हम अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखते और अपनी बुद्धि का सही इस्तेमाल करते, तो उम्मीद थी कि इस बार नफरत की विचारधारा को करारा झटका लगता। विवादित बयान देने वाली बदतमीज़ प्रवक्ता नूपुर शर्मा को जमानत मिलना इस बात का सबूत है कि हमारी भावुकता ने अदालत को “नूपुर की जान को खतरा” का हवाला देते हुए उन्हें जमानत देने का मौका दिया, इस मामले में हम सांप्रदायिक सरकार के साथ-साथ समान रूप से दोषी हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।


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