संसद परिवर्तन, एक युग का अंत और एक ‘नए युग’ की शुरुआत है

संसद परिवर्तन, एक युग का अंत और एक ‘नए युग’ की शुरुआत है

आज पुराने संसद भवन को छोड़कर सभी सांसदों को नई संसद में शिफ्ट किया गया। जब से नई नै संसद का निर्माण हुआ है, प्रदर्शनकारियों का एक ही सवाल था कि इसकी जरूरत क्या थी? शहरी नियोजन विशेषज्ञ और जाने-माने वास्तुकार एजीके मेनन ने नए संसद भवन की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकार ने भविष्य में अधिक जगह की आवश्यकता का हवाला देते हुए नए भवन का निर्माण किया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वास्तव में इसकी आवश्यकता थी ? क्या हम पुरानी इमारत में ही सुविधाओं और जगह के विस्तार का कोई रास्ता नहीं खोज सकते थे ?

यदि ऐसा किया गया होता, तो उस लोकतांत्रिक परंपरा को संरक्षित किया जा सकता था जिसकी यह (पुरानी इमारत) एक मजबूत प्रतीक है। एजी के मेनन के अनुसार, “इस तरह की परियोजना पर आगे बढ़ने से पहले व्यापक परामर्श और विचार-विमर्श आवश्यक था क्योंकि,यह ईंट और गारे की कोई सामान्य इमारत नहीं है बल्कि इसने स्वतंत्र भारत की पहली सुबह देखी है। यह स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री के पहले भाषण की प्रतिध्वनि है, यह वह स्थान है जहां संविधान सभा की बैठक हुई, संविधान पर बहस हुई और संविधान को अंतिम रूप दिया गया और उसे स्वीकार भी किया गया।

नए संसद भवन का निर्माण 4 साल की अवधि में किया गया है जिसका उद्घाटन 28 मई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। बाद में संसद का वर्षाकालीन सत्र पुराने भवन में ही आयोजित किया गया, लेकिन कल से शुरू हुए विशेष सत्र में आज सबसे महत्वपूर्ण कार्य संसद का स्थानांतरण था, जिसके लिए सुबह 11 बजे का समय तय किया गया था। बुधवार से शेष तीन दिन की बैठक नये भवन में होगी।

पुरानी इमारत 96 साल के इतिहास की गवाह है

याद रखना चाहिए कि पुराना संसद भवन सिर्फ आजाद भारत कइ 75 साल का इतिहास नहीं है, बल्कि इसने देश में आजादी की लड़ाई का चरम भी देखा और फिर देश को आजाद होते हुए भी देखा। संविधान सभा की बैठकें भी इसी भवन में होती थीं। यहीं पर हमने एक नया संविधान तैयार किया और फिर यहीं से संसदीय लोकतंत्र की घोषणा भी हुई। यही कारण है कि सरकार ने नई इमारत में जाने के बाद भी पुरानी इमारत को बनाए रखने का फैसला किया है। औपनिवेशिक शासन, द्वितीय विश्व युद्ध और आजादी की सुबह देखने वाली संसद की उसी इमारत में देश ने कई कानून बनाए हैं, कुछ ऐतिहासिक थे और कुछ विवादास्पद।

सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर द्वारा डिजाइन की गई इस इमारत का निर्माण 1927 में पूरा हुआ और 18 जनवरी, 1927 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने एक भव्य समारोह में इस गोलाकार इमारत का उद्घाटन किया, जो न केवल उस युग से एक मील का पत्थर साबित हुई है बल्कि वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति भी है।

भारत के संसदीय दौर की गवाह

भारत का संसदीय इतिहास 9 दिसंबर 1946 को संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में संविधान सभा की पहली बैठक से शुरू हुआ। 2023 का मानसून सत्र इस भवन में संसद का आखिरी सत्र हुआ जो 21 जुलाई से 11 अगस्त 2023 तक चला। 23 दिन के इस सत्र में 17 बैठकें हुईं, लोकसभा में 20 और राज्यसभा में 5 बिल पेश किए गए। नए संसद भवन की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी। पुरानी इमारत में 552 सांसदों के बैठने की क्षमता है। 2026 में संसदीय सीटों का नया परिसीमन होगा जिसमें सीटों की संख्या बढ़ जाएगी। सरकार का कहना है कि ऐसे में यह भवन नाकाफ़ी साबित होगा।

नये भवन में एक हजार 272 सीटें

65 हजार वर्ग मीटर में फैली संसद की नई त्रिकोणीय इमारत न केवल विशाल है, बल्कि इसमें राज्यसभा और लोकसभा की कुल 1,272 सीटें हैं। इसमें 500 से अधिक सीटें हैं। नए भवन में लोकसभा के 888 सदस्यों और राज्यसभा के 384 सदस्यों की क्षमता है। हालाँकि पुरानी इमारत की तरह कोई केंद्रीय कक्ष नहीं है, लेकिन लोकसभा को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि दोनों सदनों में संयुक्त सीटें हो सकें।

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