ईरान कर चुका था तालिबान पर हमले की तैयारी, ख़ामेनेई नही थे राज़ी 8 अगस्त 1998 को मजारे शरीफ में स्थित ईरानी वाणिज्य दूतावास पर तालिबान आतंकियों ने हमला करते हुए 8 ईरानी राजनयिकों की हत्या कर दी थी।
ईरान तालिबान के इस कृत्य से इतना नाराज़ और सदमे में था कि उसने मजबूर होते हुए लगभग तालिबान के खिलाफ युद्ध की घोषणा ही कर दी थी।
तालिबान आतंकियों की ओर से किए गए इस हत्याकांड का ईरान पर इतना प्रभाव पड़ा कि ईरान लगभग मजबूर हो गया था कि तालिबान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दे। ईरान ने युद्ध का निर्णय ले भी लिया था लेकिन अंतिम समय में ईरान की इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने राष्ट्रीय सर्वोच्च सुरक्षा परिषद के निर्णय को वीटो कर दिया था।
अब जबकि एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का क़ब्ज़ा हो चुका है तो अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा ईरान के लिए कोई बहुत अच्छे परिणाम लेकर नहीं आएगा और इस बात के पर्याप्त कारण भी हैं कि हम यह कह रहे हैं।
अफगानिस्तान निकट भविष्य में ईरान के लिए एक सुरक्षा संकट उत्पन्न कर सकता है। अफगानिस्तान में तालिबानी राज ईरान के लिए भविष्य में एक सुरक्षा चुनौती खड़ी कर सकता है।
हालांकि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा ईरान के लिए चिंता का विषय नहीं है लेकिन एक लंबी अवधि से ईरान और तालिबान के बीच में इस्लाम की सही तफसीर और व्याख्या को लेकर मतभेद पाया जाता है जिस कारण चरमपंथी सलफी विचारधारा के अनुयाई तालिबान शिया समुदाय को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते और ईरान दुनिया भर में शिया मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली मुख्य ताकत और एकमात्र देश है।
शायद यही गहरे मतभेद कारण बने कि 8 अगस्त 1998 को मजारे शरीफ में स्थित ईरानी वाणिज्य दूतावास पर तालिबान आतंकियों ने हमला करते हुए 8 ईरानी राजनयिकों की हत्या कर दी थी।
एप्पल न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार तालिबान आतंकियों की ओर से किए गए इस हत्याकांड का ईरान पर इतना प्रभाव पड़ा कि ईरान लगभग मजबूर हो गया था कि तालिबान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दे।
ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद एसएनएससी की विदेश समिति के तत्कालीन अध्यक्ष हुसैन मूसवी के अनुसार ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने अफगानिस्तान पर हमले को मंजूरी दे दी थी लेकिन ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनई ने अंतिम समय में अफगानिस्तान पर हमले के फैसले के खिलाफ वीटो कर दिया।
अफगानिस्तान पर अमेरिका के हमले का हालांकि ईरान ने उस वक्त स्वागत किया था क्योंकि ईरान की ओर से बिना किसी सैन्य कार्रवाई के तेहरान के एक क्षेत्रीय दुश्मन को उखाड़ फेंका गया था।
अमेरिकी आक्रमण ने ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती बने एक शत्रु को उखाड़ फेंका था। ईरान और तालिबान के बीच कई मुद्दों पर असहमति है लेकिन फिर भी वह एक बात पर तुरंत सहमत हो गए और वह है अमेरिका से दुश्मनी।
इसके अलावा ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति क्षेत्र से अमेरिका के निकलने पर केंद्रित है इसलिए अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी उसके लिए एक अच्छी खबर हो सकती है। खासकर जब हाल ही के वर्षों में ईरान और तालिबान एक दूसरे के संपर्क में रहे है।
@Maulai G