कैसे संभलेगा भ्रष्टाचार और गिरती अर्थव्यवस्था?

कैसे संभलेगा भ्रष्टाचार और गिरती अर्थव्यवस्था?

आज देश के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। जिधर देखिये हर तरफ अराजकता फैली हुई है। देश में भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है। पूरा देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है, बेरोजगारी और महंगाई आसमान छू रही है। दूसरी तरफ आर्थिक शोषण और राजनीतिक अस्थिरता अपने चरम पर है। पूरा देश नैतिक रूप से दिवालिया है। नैतिकता का हर पहलू बहुत दुखद है। अश्लीलता और नग्नता के दिग्गज नृत्य कर रहे हैं।

जब हम अंग्रेजों के ग़ुलाम थे तब कहा जाता था कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टता का असली कारण ग़ुलामी है। जब हम आज़ाद हो जायेंगे तो अपनी पसंद से क़ानून बनाएंगे लेकिन जब आजादी का सूरज निकला तो हमने देखा कि पंजाब से लेकर कलकत्ता तक, खून की नदियां बहायी गयीं, लाखों लोग मारे गए, कितने बच्चे अनाथ हो गए, लोग ग़ुलामी के दौर को याद करने लगें और कहने लगे कि इस आज़ादी से तो ग़ुलामी का दौर बेहतर था।

कुछ बुद्धिजीवियों ने कहा कि हम इस लिए बिगड़ रहे हैं क्योंकि हमारा राष्ट्र अशिक्षित है, इसलिए, हर जगह स्कूल खोले गए। कॉलेज स्थापित किए गए, विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। सर्वोत्तम पाठ्यक्रम विकसित करने के प्रयास किए गए। कमीशन पर आयोगों की स्थापना की गई. शिक्षा विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया गया। शिक्षक प्रशिक्षित थे, लेकिन उसके बाद भी हमने देखा कि जैसे-जैसे शिक्षा बढ़ती गयी बुराईयां भी बढ़ने लगी। उसका कारण ये था कि अनपढ़ लोगों ने ग़बन और घोटाले नहीं किए।

विद्वानों मुझे माफ़ कर दो, लेकिन ये बड़े घोटाले, सरकारी योजनाओं को चूना लगाना, ग़बन ये सब अशिक्षित लोग नहीं करते, ये सब काम शिक्षित ही कर सकते हैं ,जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि केवल शिक्षा के माध्यम से भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता।

कुछ बुद्धिजीवियों ने कहा कि हमारे लोग इस लिए भ्रष्ट हैं क्योंकि यहां गरीबी है। ग़रीबी भ्रष्टाचार और फ़साद की ओर ले जाती है। गरीबी खत्म हो जाएगी तो लोग भ्रष्टाचार करना बंद कर देंगे। इसलिए इसके लिए बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां लगाई गईं, विदेशी कंपनियों के लिए देश के दरवाजे खुल गए, बैंकिंग नेटवर्क बिछ गए, कारोबार के लिए व्यापारियों को क़र्ज़ दिए गए। सरकारी और अर्ध-सरकारी आर्थिक योजनाएं लागू की गईं लेकिन हमने देखा कि जैसे जैसे पैसा आया भ्रष्टाचार और बढ़ गया।

अमीरों मुझे क्षमा करो, लेकिन मुझे यह कहने की अनुमति दें कि भ्रष्टाचार में ग़रीब अमीर से बेहतर है। भ्रष्टाचार अमीरों में अधिक पाया जाता है। इसका निष्कर्ष यह है कि धन से भी भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं हो सकता। कुछ लोगों ने कहा कि गिरावट का कारण यह है कि एक पार्टी लंबे समय से सत्ता में है। इसके फैसले देश को विकसित नहीं होने दे रहे हैं। पूरे देश में एक परिवार की सरकार है। इसलिए अन्य दलों को सत्ता दी गई। जनता पार्टी सत्ता में आई, लेकिन जल्द ही कांग्रेस फिर से आ गई। फिर भाजपा और जनता दल की परीक्षा हुई। लेकिन देश में भ्रष्टाचार बढ़ता रहा। 90,000 करोड़ से अधिक बैंक घोटाले, कितने पूंजीपति लाखों करोड़ रुपये लेकर देश छोड़कर भाग गए।

भाजपा सरकार में पूरे देश में प्यार की बजाय नफरत की आग जलने लगी, लोग अकेले यात्रा करने से कतराने लगे, लोगों को कपड़ों से अपनी पहचान बनाने के लिए कहा गया। एक खास संप्रदाय को सताया जाने लगा, और हमारा देश जो पूरी दुनिया में अमन-चैन, प्यार, मोहब्बत, भाईचारा के लिए जाना जाता था, वह अपने अत्याचार और कट्टरता के लिए जाना जाने लगा। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के सामने भी देश को शर्मिंदा होना पड़ा । उन्होंने दुर्भाग्यपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित की, उनका मानना है कि भारत में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है और एक विशेष संप्रदाय को निशाना बनाया जा रहा है।

फिर कहा गया कि निजीकरण देश के लिए फायदेमंद है, राष्ट्रीय संस्थानों के बजाय अगर संस्थानों को व्यक्तिगत हाथों में सौंप दिया जाए तो समृद्धि आएगी। इसलिए कंपनियों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों की बिक्री शुरू हो गई। सरकार ने सरकारी संपत्ति को निजी हाथों में सौंप दिया। लेकिन अंतिम परिणाम और भी खतरनाक है,देश दिवालिया हो रहा है। कर्मचारियों की संख्या कम हो रही है, वेतन नहीं मिल रहा है, नई भर्तियां रोकी जा रही हैं ,यह स्थिति बहुत ही विस्फोटक है। कई प्रयोगों ने साबित कर दिया है कि यह सिर्फ व्यवस्था चलाने की बात है। हाथ बदलने से कोई बदलाव की उम्मीद नहीं है।

मैं समझता हूं और मानता हूं कि अगर व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर समाज में जिम्मेदारी की भावना हो ,और लोग समझने लगें कि हम में से प्रत्येक को परमात्मा को जवाब देना है अपने खुदा , ईश्वर और भगवान के सामने उपस्थित होकर तो भ्रष्टाचार भी ख़त्म होगा नफ़रत भी ख़त्म भी। देश भी प्रगति करेगा अर्थव्यवस्था भी।

 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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