रूस-यूक्रेन युद्ध से अमेरिका को फ़ायदा या नुक़सान?

रूस-यूक्रेन युद्ध से अमेरिका को फ़ायदा या नुक़सान?

नई दिल्ली: रूसयूक्रेन युद्ध से हर तऱफ तबाही मची हुई है, पूरी दुनियां महंगाई का सामना कर रही है, पूरी दुनियां की अर्थव्यवस्था खराब है, आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है, हर मुल्क की करेंसी ढलान पर है लेकिन दो देश ऐसे हैं जिनकी करेंसी लगातार मज़बूत हो रही है, उनमें से एक अमेरिका है और दूसरा रुस।

कहा जा रहा था कि यूक्रेन युद्ध से रूस का भारी नुक़सान होगा लेकिन जनवरी 2022 यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस की करेंसी (रूबल) लगातार मज़बूत हुई है, दूसरा देश कि जिसकी करेंसी में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है वो अमेरिका है जिसकी करेंसी डॉलर में ज़बरदस्त मज़बूती देखने को मिल रही है। रूस -अमेरिका ये दोनों यूक्रेन युद्ध के आर्किटेक्ट भी हैं और सबसे बड़े लाभार्थी भी।

रूस -यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका एक ऐसा मुल्क है जिसकी पाँचों उँगलियाँ घी में हैं और सिर कढ़ाई में। इस युद्ध की सबसे बड़ी क़ीमत अगर किसी को चुकानी पड़ रही है तो वह यूक्रेन है! यूरोपीय देशों के उकसावे में आकर यूक्रेन ने जो हिमाक़त दिखाई है उसका सारा क्रेडिट सिर्फ़ एक इंसान को जाता है और वह इंसान कोई और नहीं बल्कि यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की हैं,और इस युद्ध में होने वाले जान-माल के नुक़सान के ज़िम्मेदार भी वह ख़ुद हैं।

इस युद्ध में अमेरिका यूक्रेन की सहायता की बात तो कर रहा था लेकिन हक़ीक़त यह है कि वह ख़ामोश खड़ा तमाशा देख रहा था। बाइडेन ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह इस युद्ध में अपनी सेना नहीं भेजेंगे, उसके बावजूद भी ज़ेलेंस्की युद्ध के दलदल में धंसते चले गए, जबकि अमेरिका यूक्रेन को हथियार बेचकर लगातार पैसा कमाता रहा और यूक्रेन अमेरिका के बुने हुए युद्ध के जाल में फंसता चला गया।

यूक्रेन को युद्ध के मैदान में अकेला छोड़ दिया गया क्योंकि यूक्रेन ने रूस का सामना करने का साहस दिखाया था। यूरोपीय देशों ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वे हथियार देंगे, लेकिन युद्ध के लिए नहीं आएंगे। इसका सीधा सीधा अर्थ यह था कि हम हथियार तो बेचेंगे लेकिन युद्ध के मैदान में हमारे सिपाही किसी तरह का योगदान नहीं करेंगे। अमेरिका ने सिर्फ़ रूस पर प्रतिबंध लगाकर अपनी गर्दन बचा ली। अब यूक्रेन लगातर लड़ रहा है और दुनिया तमाशा देख रही है। लेकिन इस युद्ध में एक देश ऐसा है कि जिसके दोनों हाथों में लड्डू है और वह है संयुक्त राज्य अमेरिका। अगर नाटो में यूक्रेन को सदस्यता मिल जाती तब भी अमेरिका को फायदा होता और अब जबकि रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया है, तब भी अमेरिका फ़ायदे में हैं।

एक रिपोर्ट से पता है कि अमेरिकी रक्षा कंपनियां युद्ध के बाद रूस और यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति करके अरबों डॉलर कमा रही हैं। एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस जंग के बाद रक्षा क्षेत्र में काफ़ी पैसे ख़र्च हुए हैं। यूरोपीय संघ ने घोषणा की है कि वह यूक्रेन को 450 मिलियन यूरो के हथियार देंगे। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की और कनाडा भी रूस के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बना रहे हैं। इन फैसलों के बाद दुनिया के बंदूक निर्माताओं की चांदी हो गई है। इनमें रेथियॉन और लॉकहीड जैसी कई कंपनियां हैं जो संयुक्त राज्य में कारोबार करती हैं। अमेरिकी कंपनी रेथियॉन,स्टिंगर मिसाइल बनाती है।

रेथियॉन एक कंपनी के साथ जेवलिन एंटी टैंक मिसाइल विकसित करने के लिए भी काम कर रहा है, जिसे यूक्रेन में लॉन्च किया जाना है। युद्ध के बाद, लॉकहीड के शेयर की कीमत में 16 प्रतिशत और रेथियॉन के शेयर की कीमत में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इतना तो तय है कि यूक्रेन पर रूस के हमले से अमेरिका को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता अमेरिका अब आगे बढ़ रहा है और इससे रूस का नुकसान होना स्वाभाविक है।

दरअसल, यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को हमलावर घोषित कर दिया गया है और माना जा रहा है कि रूस की इस कार्रवाई के डर से यूरोपीय देश अमेरिका से हथियार खरीदेंगे. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका के पास वर्तमान में सबसे बड़ा हथियार बाजार है। SIPRI की रिपोर्ट है कि अमेरिकी हथियारों के बाजार में 10 वर्षों में 15% की वृद्धि हुई है, जबकि रूसी बाजार में 22% की गिरावट आई है। अब तय है कि रूस के हथियारों के बाजार में अमेरिका का बड़ा असर होगा।

अगर हम दुनिया के शीर्ष हथियार विक्रेताओं को देखें, तो इनमें पांच देशों , संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, फ्रांस, जर्मनी और चीन के पास हथियारों के बाजार का 75% हिस्सा है। सबसे पहले, अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका 37 प्रतिशत से अधिक हथियार बेचता है। उसके बाद, रूस के पास हथियार बाजार में 20% हिस्सेदारी है। जबकि फ्रांस 8.3% के साथ तीसरे, जर्मनी 5.5% के साथ चौथे और चीन 5.2% की हिस्सेदारी के साथ पांचवें स्थान पर है।

माना जाता है कि रूस की बढ़ती उपस्थिति ने संयुक्त राज्य में दहशत पैदा कर दी है। क्योंकि भारत जैसे कई बड़े देश रूस से हथियार खरीदते हैं। नवीनतम SIPRI रिपोर्ट के अनुसार, रूसी हथियारों के शीर्ष तीन खरीदार भारत, चीन और अल्जीरिया हैं। भारत अपने हथियारों का 23% रूस से, 18% चीन से और 15% अल्जीरिया से खरीदता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Hot Topics

Related Articles