मानवाधिकार या पश्चिमी देशों की साज़िश?
अभी कुछ समय पहले अफगानिस्तान के काबुल के एक स्कूल में बड़ा बम धमाका हुआ था जिसमें कम से कम 24 छात्राओं की मौत हुई थी। दावा किया जा रहा है कि इसे इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत ने अंजाम दिया है कि जिसमें ज्यादातर हजारा और शिया समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया। इससे पहले भी अप्रैल में काबुल के दो शैक्षिक संस्थानों में विस्फोट हुए थे जिसमें छह लोगों की मौत और कई घायल हो गए थे। ये दोनों स्कूल भी काबुल के दश्ते बरची इलाके में स्थित थे।
ईरान में एक लड़की की संदिग्ध मौत पर आसमान सिर पे उठाने वाले मानवाधिकारों के आंतरिक और बाहरी नेता अफगानिस्तान में सैकड़ों महिला छात्राओं के क्रूर नरसंहार पर चुप क्यों हैं? वह भारतीय अभिनेत्रियां और सोशल वर्कर जो आज़ादी के नाम पर ईरान में हिजाब विरोधी तत्वों का समर्थन कर रहे हैं वो बिलक़ीस बानो के साथ हुए बलात्कार के दोषियों की रिहाई पर ख़ामोश क्यों हैं? अफ़ग़ानिस्तानी छात्राओं के समर्थन में क्यों आवाज़ बुलंद नहीं करते? इस क़त्ले आम पर रैलियां क्यों नहीं करते?
पूरी दुनिया इस क़त्ले आम पर क्यों ख़ामोश है?
अगर सब खामोश हैं तो इसका मतलब यह है कि यह मानवाधिकार के नाम पर ढोंग और एक विशेष देश के ख़िलाफ़ साज़िश रची जा रही है। लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आज़ादी , और मानवाधिकार जैसे नारे स्पष्ट रूप से आकर्षक और सुंदर हैं, लेकिन पश्चिम देश, मीडिया और पश्चिमी शैली के लोग अपनी मर्ज़ी से ऐसे नारे देते हैं और अपनी आवश्यकतानुसार इसमें तब्दीली भी करते हैं।
पश्चिमी देशों के अनुसार, “हिजाब” स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी के खिलाफ़ है क्योंकि हिजाब का निषेध एक महिला को उसके चयन के अधिकार से वंचित करता है। इस विचार के अनुसार, एक महिला अपने लिए हिजाब नहीं चुन सकती क्योंकि यह मानव सामाजिक और सामूहिक जीवन से “पवित्रता” और “नस्लीय शुद्धता” जैसे मूल्यों को खत्म करने के लिए मानवतावाद के घोषणापत्र और पश्चिमी देशों के प्रचलित कानूनों के खिलाफ है। यह नकारात्मक है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर पैगंबर मोहम्मद का अपमान करना जायज कर दिया जाता है. क़ुरआन जैसी पवित्र किताब को जलाया जाता है। क्योंकि हर इंसान को अपनी राय व्यक्त करने का जन्मसिद्ध अधिकार है, लेकिन पश्चिम में, “होलोकॉस्ट” के बारे में बात करना एक दंडनीय अपराध है क्योंकि यह ज़ायोनियों की भावनाओं को आहत करता है।
लोकतंत्र के अलावा, हर व्यवस्था एक तानाशाही है। मानव समाज के विकास और लोगों को उनके निर्णय लेने में शामिल करने के लिए “लोकतंत्र” का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अधिकांश पश्चिमी देशों में ऐसा नहीं है दो दलों के अलावा किसी तीसरे पक्ष की कल्पना करना भी संभव नहीं है।
अमेरिका जिसे दुनिया का सबसे बड़ा और आदर्श लोकतंत्र कहा जाता है, जो लोकतंत्र और आज़ादी का सबसे बड़ा ठेकेदार है वहां कभी काले-गोरे के भेद भाव में क़त्ले आम होता है तो कभी भारतीय समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जाता है तो कभी सिखों पर अत्याचार होता है, तो कभी स्कूलों में फ़ायरिंग होती है।
इससे भी अधिक हास्यास्पद बात यह है कि लोकतंत्र के तथाकथित अग्रदूतों ने लोकतंत्र की स्थापना और कार्यान्वयन के लिए इराक, सीरिया, लीबिया और अफगानिस्तान में ईंट से ईंट बजाकर उसे नष्ट कर दिया, और अब वही ताक़तें लोगों की रक्षा करने का कर्तव्य निभा रही हैं।