उम्मते इस्लाम और हज की अहमियत
मुसलमानों के बीच सदियों के बंटवारे के भयानक परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि जब तक मुसलमान अपनी कतारों में एकजुट नहीं होंगे, तब तक उनके चरणों में अपमान और पिछड़ेपन की बेड़ियाँ बनी रहेंगी। विवादों का समाधान आसान नहीं लगता और न ही कोई प्रबल संभावना है कि इस संबंध में किए गए उपाय काम करेंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर मुसलमान इस्लाम का पालन करते हैं और इस्लामी शिक्षाओं का पालन करते हैं, साथ ही ईमानदारी और जुनून के साथ इस्लामी व्यवस्था की स्थापना करते हैं, तो उनके बीच मजबूत एकता और एकजुटता आसानी से स्थापित हो जाएगी।
इस्लाम में इबादत पर विशेष ध्यान दिया गया है। अगर मुसलमान ईमानदारी से इबादत करते हैं और इबादत की जरूरतों और मांगों को पूरा करते हैं, तो उनमें एकता होगी। उदाहरण के लिए, मुसलमानों पर रोज़ाना पाँच नमाज़ अनिवार्य है। लेकिन इस बात पर जोर दिया गया है कि ये नमाज़ सामूहिक रूप से पढ़ी जानी चाहिए ।एक ही समय में मस्जिद में दिन में पांच बार इकट्ठा होना, फिर एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर झुकना और सजदा करना, एक साथ उठना और बैठना।
एकता की स्थापना के बाद इसका दायरा इस तरह बढ़ाया गया है कि सप्ताह में एक बार जुमे की नमाज अनिवार्य कर दी गई और शहर की जामा मस्जिद में यह नमाज अदा करने का फैसला किया गया। इसके लिए शहर की जामा मस्जिद को चुना गया ताकि पूरा शहर एक ही वक़्त में एक ही जगह पर जमा हो सके।
इस्लाम में सामूहिकता और एकता पर बहुत ज़ोर दिया गया है। इस संबंध में, क़ुरआनी आयत,और हदीस भी मौजूद है। साथ ही मुसलमानों के बीच सामूहिकता स्थापित करने के लिए एक व्यवहारिक प्रणाली है। कुरान में अल्लाह ने कहा है: “ईमान वाले आपस में एक दूसरे के भाई हैं। ”
अल्लाह ने एक साथ मिलजुल कर रहने वालों की मदद का वादा किया है; ( ”یَدُ اللہِ عَلَی الجماعَةِ“ )
इस्लाम में बहुत सी इबादतों को एक साथ मिलजुल कर अंजाम देने का हुक्म दिया गया है ताकि मुसलमानों के बीच एकता और भाईचारा बना रहे। सवाल यह है कि इस्लाम में एकता पर इतना ज़ोर क्यों दिया गया है? मुसलमानों से बार-बार एकजुट होने का आग्रह क्यों किया गया है?
वास्तव में किसी भी राष्ट्र के अस्तित्व के लिए एकता और एकजुटता आवश्यक है। जो क़ौमें जितनी एकजुट रहती हैं ,उतनी ही प्रभावशाली और अजेय मानी जाती हैं। और इसके विपरीत, जो क़ौमे जितना लड़ती रहती हैं उतना ही उनका अस्तित्व ख़तरे में रहता है, उसके लिए अपनी रक्षा करना मुश्किल हो जाता है, अपनी पहचान को बाक़ी रखना मुश्किल हो जाता है।
कोई क़ौम,कोई भी राष्ट्र कितना ही छोटा हो, लेकिन अगर वह एकजुट है, तो उसके उज्जवल भविष्य की संभावनाएं हैं। इतिहास में इसके स्पष्ट उदाहरण मौजूद हैं। पैगंबर मोहम्मद के साथियों की संख्या बहुत कम थी। लेकिन वे एकजुट थे, इसलिए इस छोटी सी संख्या ने युद्ध के मैदान में महान योद्धाओं को पीछे छोड़ दिया। इस्लाम का इतिहास इस बात का गवाह है कि पैग़म्बर की बेहतरीन लीडरशिप में, इस्लाम दुनिया के दूर-दराज देशों, क्षेत्रों,और इलाक़ों में पहुंच गया।
मुसलमानों के सामने दुनिया बिखरी हुई थी लेकिन जब मुसलमानों मे भाईचार आया है, आपस में एकता बढ़ी है तो बड़े बड़े मुल्क मुसलमानों के क़दमों में आ गए, बड़ी बड़ी ताक़तें मुसलमानों के सामने झुक गयीं। लेकिन जब मुसलमानों में भाईचारा ख़त्म होने लगा, वे आपस में ही, लड़ने लगे अपने ही हितों के लिए अपने ही भाइयों पर हमले करने लगे, फिर दुनिया में मुसलमानों का वर्चस्व समाप्त हो गया और छोटे छोटे राष्ट्र भी उन्हें निवाला बनाने लगे।
आज स्थिति यह है कि मुसलमानों के पचास से अधिक देश हैं, दुनिया में उनकी संख्या एक अरब से अधिक है, कई मुस्लिम देशों के पास पेट्रोल, डीजल, तेल और गैस का भंडार है फिर भी विश्व स्तर पर उनका कोई प्रभाव नहीं है | न सिर्फ बड़े- बड़े राष्ट्र बल्कि छोट- छोटे राष्ट्र भी उन्हें घेरने और उनके जीवन को कठिन बनाने पर तुले हुए हैं। मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए इस्लाम के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए जाते हैं और कभी क़ुरआन और कभी इस्लाम के पैगंबर को निशाना बनाने की कोशिश की जाती है।
मुसलमानों को नुकसान पहुँचाने के लिए, उन्हें क्रोधित किया जाता और फिर उन्हें जान-माल का नुक़सान पहुंचाने के लिए छोटे- छोटे समूहों में विभाजित किया जाता है। समुदाय के नाम पर उनके बीच दूरियां पैदा की जाती हैं, संप्रदाय और क्षेत्रवाद के नाम पर उनके बीच फ़साद फैलाया जाता हैं। इस संप्रदायवाद ने मुसलमानों के शिराज़े को बुरी तरह प्रभावित किया है।
हर राष्ट्र दुनिया पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, इसलिए आगे बढ़कर अन्य राष्ट्रों को पीछे छोड़ने का समय आ गया है। पूरी दुनियां के मुसलमानों को हज के समय एक साथ जमा होकर एकता के साथ अपनी शक्ति को इकट्ठा करके पूरी दुनियां के सामने अपनी एकता का प्रमाण पेश करना चाहिए लेकिन मुसलमानों का शीराज़ा अभी भी बिखरा हुआ हैं। इसी को देखकर अल्लामा इकबाल ने कहा था:
यूं तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ कि मुसलमान भी हो
फ़िरक़ाबंदी है कहीं, और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं
मनफ़अत एक है, इस क़ौम का नुकसान भी एक
एक ही सबका नबी ,दीन भी ईमान भी एक
हरमे पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
मुसलमानों के बीच सदियों के बंटवारे के भयानक परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि जब तक मुसलमान अपनी कतारों में एकजुट नहीं होंगे, तब तक उनके चरणों में अपमान और पिछड़ेपन की बेड़ियाँ बंधी रहेंगी। विवादों का समाधान आसान नहीं लगता और न ही कोई प्रबल संभावना है कि इस संबंध में किए गए उपाय काम करेंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर मुसलमान इस्लाम का पालन करते हैं और इस्लामी शिक्षाओं से सबक़ हासिल करते हैं तो उन्हें आगे बढ़ने और मज़बूत होने से कोई नहीं रोक सकता।
हज इस्लाम में एक ऐसा कार्य है जिसने पूरी दुनियां के मुसलामानों को एक ही समय में एक ही जगह पर एक ही कपड़े में एक साथ खड़ा कर दिया ताकि शिया -सुन्नी, काले-गोरे, अमीर -ग़रीब का फ़र्क़ मिट जाए और वो आपस में एकजुट हो जाएँ। दुनियां के किसी भी धर्म में कोई ऐसा कार्य नहीं है जिसको अंजाम देने के लिए पूरी दुनियां के लोग एक साथ एक जगह पर जमा हों।
ये श्रेष्ठता सिर्फ़ इस्लाम में पायी जाती है, शायद इसका मक़सद ये हो कि पूरी दुनियां के मुसलमान कम से कम साल में एक बार एक जगह पर जमा हों ताकि उनमें भाई चारा बढ़े, आपस में मोल जोल बढ़े, उन्हें अपनी ताक़त का एहसास हो, एक दुसरे से राय-मशविरा करें, अपनीऔर क़ौम की कमियों पे ध्यान दें और उसे दूर करने के बारे कोई रास्ता तलाश करें ताकि मुसलमान भी तरक़्क़ी करें और उम्मते इस्लाम भी।