अमेरिका अपने इतिहास के अभूतपूर्व पड़ाव से गुज़र रहा है, अमेरिकी कांग्रेस में इलेक्ट्रोल वोटों की गिनती हो या कांग्रेस भवन पर ट्रम्प समर्थक उपद्रवियों का हमला दुनिया भर में अमेरिका की साख बहुत बुरी तरह मिट्टी में मिली है।
गत सप्ताह के अंत और अमेरिकी कांग्रेस में इलेक्ट्रोल वोटों की गिनती के साथ ही दुनिया भर में अमेरिका के भ्रम का जाल एक बार फिर तार तार हो गया। ट्रम्प समर्थकों ने अमेरिकी कांग्रेस में घुस , जमकर उत्पात मचाया कांग्रेस स्पीकर नैंसी प्लोसी के दफ्तर में भी खूब तोड़फोड़ की गई तथा कई संवेदनशील दस्तावेज़ों पर हाथ साफ़ कर दिया गया। यही नहीं अमेरिकी बलों द्वारा इस घटना में शामिल कई लोग काल के गाल में समा गए और मानवाधिकार का खाली ढोल पीटने वाले अमेरिका के अपराधों में कुछ काले कारनामे और बढ़ गए।
अमेरिका के ख़ूनी क्रिसमिस ने 2009 के ईरान की याद दिला दी जब इस देश में भी चुनाव के बाद प्रदर्शन हिंसक हो गई थे लेकिन इन दोनों घटनाओं पर पश्चिमी जगत का रुख एकदम भिन्न रहा है एक सी घटनाएं लेकिन दोनों घटनाओं पर अलग अलग रुख !
ईरान को लेकर फ़ारसी भाषा से लेकर पश्चिमी जगत का हर मीडिया संस्थान हर देश एक कोने कोने से हर घंटे स्पेशल कवरेज दे रहा है लेकिन इन्ही मीडिया हाउस ने अमेरिकी घटना को लेकर एक लाइन की ब्रेकिंग न्यूज़ से अधिक कुछ देना गवारा नहीं किया।सबसे अधिक आश्चर्य वॉइस ऑफ़ अमेरिका और रेडियो फ़र्दा की गतिविधियों पर रहा जिन्होंने इस घटना पर अधिक ध्यान ही नहीं दिया बल्कि अमेरिकी चुनाव के नतीजों पर बहस करते रहे।
रेडियो फ़र्दा ने अपने इंस्टाग्राम पर इस घटने के बाद जो 30 पोस्ट डाले उस में दिर्फ़ तीन पोस्ट में अमेरिकी कांग्रेस पर ट्रम्प समर्थकों के हमले का उल्लेख किया वह भी साकारत्मक रूप से इस खबर को कवरेज देते हुए !
ईरान में निदा सुल्तानी की मौत पर कई महीने तक माहौल को गरमाने और ईरान पर अनावश्यक दबाव बनाने वाले इन मीडिया संस्थानों ने अमेरिकी कांग्रेस में हुए दंगों और हमलों में मारी गई एशले बेबबिट की मौत पर कोई खबर दिखाना भी पसंद नहीं किया।
ईरान ने स्थिति से निपटने के लिए इंटरनेट पर सिमित रोक लगायी तो BBC से लेकर अमेरिकी कांग्रेस तक ने इस के खिलाफ मुहिम छेड़ने का ऐलान किया लेकिन अमेरिकी कांग्रेस पर हमले की फोटो और वीडियो को शेयर करने पर ट्विटर और फेसबुक की ओर से प्रतिबंधित करने के बाद भी पश्चिमी जगत और मानवाधिकार तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का रोना रोने वालो के कान पर जूं भी नहीं रेंगी।अमेरिका के घटनाक्रम पर पश्चिमी जगत के नेताओं के बयान की ईरान के घटनाक्रम पर दिए गए बयान से तुलना करें तो पता चले कि उनके निकट सिर्फ अमेरिका और यूरोप में ही लोकतंत्र है और वही सम्मान लायक है बाक़ी और कहीं नहीं। कनाडा , यूरोप , ब्रिटेन फ़्रांस ने जहाँ इस घटनाक्रम पर ट्रम्प से लोकतंत्र के सम्मान की बात कहते हुए इस घटना की निंदा कर इसे शर्मनाक बताया वहीँ ईरान के घटनाक्रम पर इन देशों का रुख एकदम अलग था।
फ़्रेंच नेता सर्कोज़ी ने ईरान की घटनाओं को धांधली की स्वभाविक प्रतिक्रिया बताते हुए उपद्रवियों का समर्थन किया था, वहीं मर्केल ने कहा था कि हम सुरक्षा बलों के काम पर नज़र रखे हुए हैं तथा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग की कड़ी निंदा करते हैं। वहीँ अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा था कि हम इस काम का समर्थन करते है और सुधारवादी धड़े की कोशिशों को सराहते हैं और उनका आभार व्यक्त करते हैं। याद रहे कि बाद में इन्ही हिलेरी क्लिंटन ने अपनी आत्मकथा में ईरान के 2009 चुनाव के बाद हुई हिंसा के बारे में लिखते हुए कहा था कि ईरान के 2009 चुनाव के लिए ओबामा प्रशासन ने दुनिया भर में 5 हज़ार से अधिक लोगों को तेहरान के खिलाफ प्रशिक्षण देने में दसियों मिलियन डॉलर से अधिक की रक़म खर्च की थी।