विश्व क़ुद्स दिवस पर इस्राइली समर्थकों की साज़िशें हुईं नाकाम
जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस इस्राइली समर्थकों के दबाव में आते हुए जर्मन अधिकारियों द्वारा ऐलान किया गया था है कि विश्व क़ुद्स दिवस के मौक़े पर बेर्लिन में किसी भी तरह के विरोध मार्च और कार्यक्रम की इजाज़त नहीं होगी।
परंतु बैतुल मुक़द्दस के समर्थकों की लगातार बढ़ती संख्या ने जर्मन सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया और बर्लिन की सड़कों पर अंतर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस के अवसर पर पूरी भव्यता के साथ रैलियां निकलीं।
प्राप्त सूत्रों के अनुसार, हर साल की तरह इस वर्ष भी जर्मनी में मौजूद कट्टरपंथी यहूदी और इसाइली समर्थक गुट जर्मन सरकार पर यह दबाव बना रहे थे कि इस देश में विश्व क़ुद्स दिवस के मौक़े पर होने वाली रैलियों और कार्यक्रमों पर रोक लगे।
लेकिन मस्जिदुल अक़्सा और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की आज़ादी के समर्थकों ने इस्राइली समर्थकों की सारी साज़िशों पर पानी फेर दिया।
विश्व क़ुद्स दिवस के मौक़े पर इस बार जर्मनी में जिस भव्यता के साथ रैलियां निकली वह अभूतपूर्व था। ऐसा नहीं है कि जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस पर कार्यक्रमों और रैलियों का आयोजन नहीं होता आया है।
आपको जानकारी बताते हुए चलें कि इस बार विश्व क़ुद्स दिवस की मार्च में शामिल लोगों की संख्या जहां पहले के वर्षों से बहुत ज़्यादा थी वहीं रैलियों में शामिल लोगों के हाथों में ईरान, इराक़, सीरिया, फ़िलिस्तीनी और जर्मनी के झंडे थे।
पिछले वर्षों की भांति इस साल भी ईरान सहित कई गैर इस्लामिक देशों ने भी फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में विशाल रैलियां निकालीं।
इसके अलावा विश्व क़ुद्स दिवस की बुनियाद रखने वाले इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी (र.ह) और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह ख़ामनेई की तस्वीरों को भी अपने हाथों में उठाए हुए थे।
बता दें कि एक तरफ जहां यूरोपीय देशों में इस्लामोफ़ोबिया लगातार तेज़ी से बढ़ रहा है। आये दिन मुसलमानों के ख़िलाफ़ कोई न कोई बयान सुनने को मिलते हैं या फिर अन्यायपूर्ण कार्यवाहियों की ख़बरें पश्चिमी देशों से आती रहती है।
वहीं दूसरी तरफ इन देशों में इस्लाम धर्म की ओर आकर्षित होने वालों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। जर्मनी की 8 करोड़ से ज़्यादा जनसंख्या है, फ्रांस के बाद यह दूसरा यूरोपीय देश है जहां मुसलमानों बड़ी संख्या में रहते हैं।
जर्मनी में लगभग 41 लाख मुसलमान रहते हैं जिनमें 30 लाख मुस्लिम मूल रूप से तुर्की के हैं।
हालिया कुछ वर्षों में जर्मनी में नस्लवाद और इस्लामोफ़ोबिया के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है।