नेपाल का श्रीलंका, बांग्लादेश जैसा हाल, पीएम ओली समेत कई नेताओं का इस्तीफ़ा
नेपाल इस समय गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन सोमवार को हिंसक हो गया। राजधानी काठमांडू सहित कई शहरों में हजारों की भीड़ सड़कों पर उतर आई। पुलिस और सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं, जिसमें अब तक 21 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 300 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे हैं। हालात पर काबू पाने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं, जिसके चलते नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।
ओली के इस्तीफ़े के बाद राजनीतिक भविष्य को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सूत्रों के अनुसार, उन्होंने सत्ता की कमान अपने उप प्रधानमंत्री को सौंप दी है, लेकिन प्रदर्शनकारी यह मांग कर रहे हैं कि देश में एक अंतरिम सरकार का गठन किया जाए और संसद को भंग कर नए सिरे से चुनाव कराए जाएं। इस बीच यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ओली देश छोड़कर विदेश जा सकते हैं, हालांकि इस पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
नेपाल के कपिलवस्तु से सांसद मंगल प्रसाद गुप्ता ने बताया कि परंपरा के अनुसार प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े के बाद रिटायर्ड चीफ़ जस्टिस को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया जा सकता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव में अभी समय लगेगा और देश को स्थिर होने के लिए अंतरिम व्यवस्था की ज़रूरत है।
हिंसक प्रदर्शनों का असर अब नेताओं और मंत्रियों के घरों तक पहुंच चुका है। मंगलवार को गुस्साई भीड़ ने कई मंत्रियों के घरों पर हमले किए। विपक्ष के नेता पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’, नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा, गृह मंत्री और संचार मंत्री के घरों पर हमला हुआ, जबकि गृह मंत्री के आवास में आग भी लगा दी गई। प्रदर्शनकारी युवाओं का एक बड़ा जत्था प्रधानमंत्री ओली के निवास की ओर बढ़ने की कोशिश करता देखा गया।
स्थिति बिगड़ने के बाद सरकार के कई मंत्री भी अपने पदों से इस्तीफ़ा दे चुके हैं। इनमें कृषि मंत्री रामनाथ अधिकारी, जल आपूर्ति मंत्री प्रदीप यादव और कांग्रेस गुट से जुड़े अन्य मंत्री शामिल हैं। इससे पहले सोमवार को ही गृह मंत्री रमेश लेखक ने हिंसा और प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था।
नेपाल की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि देश एक गहरे राजनीतिक संक्रमण काल से गुजर रहा है। जनता का गुस्सा, सरकार की विफलताएं और सत्ता में अस्थिरता मिलकर नेपाल को श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे संकटग्रस्त हालात की तरफ धकेल रहे हैं। अब सबकी नज़र इस पर टिकी है कि अंतरिम सरकार का गठन होता है या फिर नेपाल एक नए चुनावी दौर में प्रवेश करता है।


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