न्यूज़ीलैंड में ग़ाज़ा के समर्थन और इज़रायल के विरोध में ऐतिहासिक प्रदर्शन
न्यूज़ीलैंड में हज़ारों लोगों ने विशाल रैली निकालकर फ़िलिस्तीनी क़ौम के प्रति अपना समर्थन जताया और सरकार से मांग की कि वह ग़ाज़ा में इज़रायल के द्वारा किए जा रहे जनसंहार और जघन्य अपराधों के कारण उस पर प्रतिबंध लगाए। यह रैली, जिसे “मानवता की रैली” नाम दिया गया था, आयोजकों के अनुसार फ़िलिस्तीन के समर्थन में न्यूज़ीलैंड के इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन माना जा रहा है।
मीडिया ने बताया कि शनिवार (स्थानीय समय) को न्यूज़ीलैंड के शहर ऑकलैंड में एक बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुआ, जिसमें फ़िलिस्तीन के समर्थन और ग़ाज़ा पर इज़रायली क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ नारे लगाए गए। न्यूज़ीलैंड की जनता ने दुनिया को दिखा दिया कि इंसानियत का पक्ष लेना क्या होता है। इइस रैली ने इज़रायल द्वारा किए जा रहे खूनख़राबे और जनसंहारक युद्ध के खिलाफ़ गगनभेदी नारों से पूरी दुनिया का ध्यान ग़ाज़ा की तरफ़ खींचा है।
इस रैली में प्रदर्शनकारियों ने इस बात पर जोर दिया कि इज़रायल की हत्यारी सरकार और उसकी सेना खुलेआम बच्चों, औरतों और बुज़ुर्गों का क़त्लेआम कर रही है, और अब दुनिया चुप नहीं बैठ सकती। लोगों ने फ़िलिस्तीन के झंडे उठाकर इज़रायल को चुनौती दी और स्पष्ट संदेश दिया कि “नरसंहार को सामान्य मत बनाओ” और “फ़िलिस्तीन का साथ दो, वरना तुम भी अपराधी हो।”
यह नारे सिर्फ़ इज़रायल के लिए नहीं बल्कि उन ढोंगी पश्चिमी देशों और चुप बैठे अरब शासकों के लिए भी थे जो ख़ामोशी से इस क़त्लेआम को देख रहे हैं। रेडियो न्यूज़ीलैंड (RNZ) के मुताबिक़, रैली ऑटिया स्क्वायर से शुरू होकर विक्टोरिया पार्क पर समाप्त हुई। पूरे रास्ते प्रदर्शनकारियों की आवाज़ एक ही मांग पर केंद्रित रही—न्यूज़ीलैंड सरकार तुरंत इज़रायल पर प्रतिबंध लगाए और ग़ाज़ा की नाकेबंदी खत्म करवाने के लिए ठोस कदम उठाए।
रैली में मौजूद नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि इज़रायल, ग़ाज़ा को एक खुली जेल में बदल चुका है और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी UNRWA को तकरीबन ठप कर दिया गया है। अगर अब भी दुनिया खड़ी नहीं हुई, तो इज़रायल अपनी बर्बरता को और बढ़ा देगा।
‘ऑटेआरोआ फ़ॉर फ़िलिस्तीन’ की प्रवक्ता नादिन मर्तज़ा ने बेहद भावुक अंदाज़ में कहा:
“यह न्यूज़ीलैंड के इतिहास की सबसे बड़ी रैली है। हमारी आवाज़ इज़रायल की क्रूरता के खिलाफ़ है और हम तब तक चुप नहीं बैठेंगे जब तक ग़ाज़ा के बच्चे अमन में सांस न लें। इस रैली ने साबित कर दिया कि इंसानियत की असली ताक़त जनता के हाथ में है। जब पूरी दुनिया के शासक इज़रायली अत्याचारों के सामने मूक दर्शक बने बैठे हैं, तब आम लोग सड़कों पर उतरकर न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं।


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