कोलंबिया से इज़रायली राजनयिकों का निष्कासन, फ्री ट्रेड एग्रीमेंट भी रद्द

कोलंबिया से इज़रायली राजनयिकों का निष्कासन, फ्री ट्रेड एग्रीमेंट भी रद्द

कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो ने इज़रायल के ख़िलाफ़ एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाते हुए बुधवार की शाम को घोषणा की कि, उनकी सरकार ने इज़रायल के साथ हुए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (व्यापार समझौता) को रद्द कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने आदेश दिया कि, कोलंबिया में मौजूद इज़रायली राजनयिक दल को तुरंत देश छोड़ना होगा। यह फैसला उस घटना के बाद आया, जिसमें इज़रायली सेना ने ग़ाज़ा के लिए मानवीय मदद लेकर जा रहे जहाज़ों के बेड़े “समूद” पर हमला किया।

फ़्लोटिला जहाज़ों पर हमला, नेतन्याहू का एक और अंतरराष्ट्रीय अपराध:गुस्तावो पेत्रो 

राष्ट्रपति पेत्रो ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट “एक्स” (पूर्व ट्विटर) पर यह घोषणा की। उन्होंने लिखा: “मैं इज़रायल के साथ हुए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को रद्द करता हूँ और कोलंबिया से इज़रायली राजनयिक मिशन की तत्काल निकासी का आदेश देता हूँ।” राष्ट्रपति ने कहा कि अगर यह जानकारी सही है कि, इज़रायली सेना ने अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में मानवीय सहायता लेकर जा रहे जहाज़ों पर हमला किया है, तो यह इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू का एक और अंतरराष्ट्रीय अपराध है।

पेत्रो ने बताया कि इस घटना में दो कोलंबियाई नागरिक भी शामिल थे, जो फ़िलिस्तीन के समर्थन में मानवीय गतिविधियों में हिस्सा ले रहे थे। उन्हें अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्होंने विदेश मंत्रालय को आदेश दिया कि इस मामले में सभी आवश्यक कानूनी और राजनयिक कदम उठाए जाएं, जिसमें इज़रायली अदालतों में मुक़दमा करना भी शामिल है।

राष्ट्रपति ने इस हमले और गिरफ्तारी की तस्वीरें भी साझा कीं, जिनमें इज़रायली सैनिकों द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ की गई बर्बरता साफ दिखाई दे रही थी। उन्होंने कहा: “जो लोग अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में निर्दोष युवाओं की गिरफ्तारी पर खुश होते हैं, वे कभी यह नहीं समझ पाएंगे कि असली सभ्यता क्या होती है।”

इस फैसले से यह साफ संकेत मिला है कि कोलंबिया अब इज़रायल की नीतियों के ख़िलाफ़ खुलकर खड़ा है। पेत्रो का यह कदम न केवल कोलंबिया की विदेश नीति में बदलाव का संकेत है बल्कि यह फ़िलिस्तीन के समर्थन और ग़ाज़ा पर हो रहे हमलों के खिलाफ एक कड़ा संदेश भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के फैसले से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इज़रायल पर दबाव और बढ़ सकता है।

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