ब्रिटेन: ‘पैलेस्टाइन एक्शन’ पर बैन, मानवाधिकार संगठनों का तीव्र विरोध
23 जून को ब्रिटेन ने फिलिस्तीन समर्थक संगठन ‘पैलेस्टाइन एक्शन’ को आतंकवाद विरोधी क़ानूनों के तहत प्रतिबंधित घोषित कर दिया, जिससे संगठन की सदस्यता एक आपराधिक अपराध बन गई है। इस फ़ैसले के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी में भारी विरोध और प्रदर्शन शुरू हो गए।
‘पैलेस्टाइन एक्शन’ क्या है?
‘पैलेस्टाइन एक्शन’ खुद को एक ऐसा आंदोलन मानता है जो “इज़रायल की जनसंहार और रंगभेद आधारित नीतियों में वैश्विक भागीदारी को खत्म करने” के लिए संघर्ष कर रहा है। यह समूह जुलाई 2020 में बना और “अशांति पैदा करने वाली रणनीति” के ज़रिए उन कंपनियों को निशाना बनाता है जो इज़रायल का साथ देती हैं – विशेषकर हथियार बनाने वाली कंपनियाँ जैसे इज़रायली ‘एल्बिट सिस्टम्स’, इतालवी ‘लियोनार्डो’, फ्रांसीसी ‘थेल्स’ और अमेरिकी ‘टेलीडीन’। यह समूह ब्रिटेन में कई बार इन कंपनियों की फैक्ट्रियों को निशाना बना चुका है।
2022 में, इसके कार्यकर्ताओं ने ग्लासगो स्थित थेल्स की एक फैक्ट्री को नुकसान पहुँचाया, जिसकी कीमत एक मिलियन पाउंड से ज़्यादा थी। 2021 में, उन्होंने लीसेस्टर में एल्बिट की सब्सिडियरी UAV टेकटिकल सिस्टम्स की छत पर 6 दिनों तक विरोध किया, जो कई गिरफ्तारियों पर खत्म हुआ।
प्रतिबंध क्यों लगाया गया?
ब्रिटेन की गृहमंत्री योवेट कूपर ने 23 जून को इस समूह को आतंकवाद अधिनियम 2000 के तहत प्रतिबंधित करने की घोषणा की। यह फ़ैसला 20 जून की उस घटना के बाद लिया गया जब कार्यकर्ताओं ने ऑक्सफ़ोर्डशायर में RAF Brize Norton एयरबेस में घुसकर दो एयरबस विमानों के इंजनों पर लाल पेंट फेंका और अन्य नुकसान पहुँचाया। इससे लाखों पाउंड का नुकसान हुआ।
प्रधानमंत्री कीर स्टार्म ने इसे “शर्मनाक” करार दिया और कूपर ने कहा कि यह समूह “अस्वीकार्य आपराधिक गतिविधियों का लंबा इतिहास” रखता है। उन्होंने यह भी बताया कि ब्रिटेन में इस समय 81 प्रतिबंधित संगठन हैं, जिनमें हमास, हिज़्बुल्लाह, आईएसआईएस, अल-कायदा और टीटीपी शामिल हैं। इस प्रतिबंध के खिलाफ 24 जून को लंदन में प्रदर्शन हुए जहाँ प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं। इस दौरान 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 7 पर आपातकालीन कर्मचारियों पर हमले और नस्लीय अपराधों का आरोप लगाया गया है।
पाबंदी पर प्रतिक्रिया
इस घोषणा पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों ने तीव्र आलोचना की है। एमनेस्टी इंटरनेशनल यूके के प्रमुख साचा देशमुख ने 24 जून को एक बयान में कहा:
“ब्रिटेन में आतंकवाद की परिभाषा बेहद व्यापक है, और ‘पैलेस्टाइन एक्शन’ जैसे विरोध समूह पर प्रतिबंध लगाना अभिव्यक्ति, एकत्र होने और शांतिपूर्ण प्रदर्शन जैसे बुनियादी अधिकारों में अनुचित हस्तक्षेप का जोखिम पैदा करता है।”
उन्होंने कहा कि वर्तमान आपराधिक कानून, यदि मानवाधिकारों की रक्षा के साथ लागू किए जाएं, तो ऐसे कार्यों से निपटने के लिए पर्याप्त हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यह प्रतिबंध उन सभी कार्यकर्ताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकता है जो ग़ज़ा में जारी इज़रायली नरसंहार पर चिंतित हैं। लंदन स्थित संस्था CAGE इंटरनेशनल ने भी इस फ़ैसले की निंदा की। इसकी प्रमुख नायला अहमद ने कहा:
“हम पैलेस्टाइन एक्शन के साथ पूर्ण एकजुटता प्रकट करते हैं। आतंकवाद और प्रतिबंधों से जुड़े कानून अब खुलेआम नरसंहार को जारी रखने में सहायक बन रहे हैं।”
आयरिश लेखिका सैली रूनी ने 22 जून को ‘द गार्डियन’ में एक लेख में लिखा:
“इज़रायल निर्दोष फ़िलिस्तीनियों की हत्या करता है, कार्यकर्ता एक विमान पर स्प्रे पेंट करते हैं। अंदाज़ा लगाइए कि ब्रिटिश सरकार इनमें से किसे आतंकवाद मानती है?”
उन्होंने आगे लिखा:
“वास्तविक राजनीतिक प्रतिरोध हमेशा कुछ ना कुछ अवैधताओं से जुड़ा रहा है। लेकिन ‘टेररिज़्म एक्ट’ के तहत किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाना अलग स्तर की बात है — यहां तक कि केवल मौखिक समर्थन भी 14 साल की जेल के योग्य अपराध बन सकता है।”
दक्षिण एशिया सॉलिडैरिटी ग्रुप ने इस कदम की निंदा करते हुए इसे “औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी प्रतिरोध पर सबसे घातक हमला” बताया। उन्होंने ‘फिल्टन 18’ नामक उन कार्यकर्ताओं का भी ज़िक्र किया, जो एल्बिट सिस्टम्स को निशाना बनाने के चलते इस समय जेल में हैं।

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