नए संसद भवन की क्या जरूरत थी: उद्धव ठाकरे

नए संसद भवन की क्या जरूरत थी: उद्धव ठाकरे

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों नए संसद भवन का उद्घाटन उद्घाटन हुआ। भारतीय जनता पार्टी ,और उसके सहयोगी दल, इसे ऐतिहासिक और गौरव का क्षण बता रहे हैं,तो वहीं कांग्रेस,टीएमसी,डीएमके,सपा,जदयू और आरजेडी समेत कई विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति द्वारा इसका उद्घाटन न कराए जाने पर अपनी नाराज़गी प्रकट करते हुए उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया था। विपक्ष इसे लेकर लगातार केंद्र सरकार पर हमलावर है। संसद के उद्घाटन के मौके पर उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलते हुए कहा, नए संसद भवन की क्या जरूरत थी ?

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने अपने सामना में अपने संपादकीय के जरिए नए संसद भवन के उद्घाटन का मुद्दा उठाया और एक बार फिर प्रधानमंत्री सहित भाजपा पर हमला बोला है। संपादकीय में कहा गया है कि आज नए संसद भवन का उद्घाटन आस्था और परंपरा के अनुरूप नहीं है। और संसद पर इस तरह का कब्जा लोकतंत्र के लिए घातक है। हालांकि नया संसद भवन लोकतंत्र के लिए घातक कैसे हो सकता है? इसके बारे में सामना में कुछ नहीं लिखा गया है। जबकि आम जनता ने इस मुद्दे पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया है।

संपादकीय लेख में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के शब्दों को दोहराते हुए कहा कि लोकतंत्र को बचाने के लिए हमारे देश में दिन-रात संघर्ष जारी है। लेख में सवाल किया गया और कहा गया कि दिल्ली में नया संसद भवन बनाया गया है। क्या वाकई इसकी जरूरत थी? सामना के संपादकीय में नए संसद भवन को अनावश्यक बताते हुए प्रधानमंत्री को निशाने पर लेते हुए कहा गया है कि तानाशाही विचारधाराओं और सत्ता के केंद्रीकरण पर पनपती है। साथ ही नया संसद भवन बन भी गया है लेकिन देश के दोनों सदनों में पिछले आठ साल से डर का माहौल बना हुआ है।

सामना ने आगे लिखा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की अनदेखी करते हुए आज नए संसद भवन का उद्घाटन किया जा रहा है। यह मान्यता और परंपरा के अनुसार नहीं है। राष्ट्रपति देश और संसद का प्रमुख होता है। संसद पर ऐसा कब्जा लोकतंत्र के लिए घातक है। भाजपा को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इस पर जंग छेड़ रखी है।

शिवसेना (यूबीटी) ने कहा, “परंपरा के अनुसार, देश के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नई संसद का उद्घाटन करना चाहिए, यह मांग पहले राहुल गांधी द्वारा की गई थी और लगभग सभी विपक्षी दलों द्वारा स्वीकार की गई थी। यह लोकतंत्र की आस्था और परंपरा के अनुरूप नहीं है कि, राष्ट्रपति को साधारण सा निमंत्रण भी नहीं दिया गया।

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