तालिबान चीफ मारा गया , मुल्ला ग़नी बरादर बंदी अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा करने के बाद तालिबान की ओर से उसके दो सर्वोच्च नेताओं की अफ़ग़ानिस्तान में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही थी।
तालिबान चीफ हैबतुल्लाह अखुंदज़ादेह की मौत की खबरें आ रहे हैं वहीँ कहा जा रहा है क्या मुल्ला बरादर को भी बंदी बना लिया गया है।
द स्पैक्टेटर न्यूज़पेपर की रिपोर्ट के अनुसार मुल्ला बरादर को कंधार में बंदी बना लिया गया है जबकि तालिबान चीफ हैबतुल्लाह अखुंदज़ादेह की मौत हो चुकी है।
तालिबान के इन दोनों नेताओं के बारे में गोपनीयता का माहौल है। शुरू में इन दोनों नेताओं के अफ़ग़ानिस्तान की नवगठित सरकार में नंबर एक और नंबर दो होने की उम्मीद थी। लेकिन सरकार गठन के लिए जारी वार्ता के बीच हक्कानी के साथ झड़प होने के बाद बार्डर को शायद ही किसी ने देखा हो।
कहने को तो मुल्ला बरादर की ओर से हाल ही में एक वीडियो संदेश जारी किया गया था जिसमें उसके घायल होने की खबरों पर कुछ हद तक विराम जरूर लग गया था लेकिन ब्रिटिश पत्रिका द स्पैक्टेटर की रिपोर्ट के अनुसार पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह संदेश बंधक बनाए जाने के बाद का प्रतीत होता है।
अफगानिस्तान में सरकार गठन के लिए जारी बातचीत के बीच तालिबान नेता मुल्ला बरादर को सबसे अधिक राजनीतिक नुकसान हुआ है। पहले कहा जा रहा था कि वह अफ़ग़ानिस्तान की नई सरकार का मुखिया बनाया जाएगा लेकिन बातचीत के बाद उससे डिप्टी प्रधानमंत्री बनाया गया।
कहा जाता है कि पाकिस्तान के हक्कानी नेटवर्क के साथ बरादर की हिंसक झड़प हो गई। इस बात की भी रिपोर्ट सामने आई थी कि आईएसआई चीफ जनरल फैज़ हामिद ने मुल्ला बरादर के बजाय हक्कानी को तरजीह देते हुए अफगानिस्तान सरकार में आईएसआई और पाकिस्तान के समर्थक लोगों को सरकार में जगह दिलाई है।
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर जहां कंधार में है तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदज़ादेह के ठिकाने के बारे में भी कुछ मालूम नहीं हो सका है। तालिबान ने हालांकि बार-बार वादा किया है कि हैबतुल्लाह अखुंदज़ादेह जल्द ही सबके सामने आएंगे लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को 1 महीने से अधिक का समय हो चुका है। मीडिया में जारी अफवाहों और अटकलों पर ध्यान दें तो यह बात सही प्रतीत होती है कि हैबतुल्लाह अखुंदज़ादेह मारा गया है।
इन बातों को इसलिए भी बल मिलता है कि तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की मौत की खबर भी तालिबान ने कई वर्षों तक छुपा कर रखी थी। मुल्ला उमर की मौत के लगभग 2 साल बाद 2015 में तालिबान की ओर से उसकी मौत की खबर सार्वजनिक की गयी थी।