श्रीलंका: कोरोना के नाम पर मुस्लिमों पर बढ़ता अत्याचार, मुस्लिम देशों की चुप्पी निंदनीय

जनवरी 2021 की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की एक टीम ने श्रीलंका में मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यकों से संबंधित कोरोनो वायरस पीड़ितों के शवों के जबरन दाह संस्कार की नीति के खिलाफ श्रीलंकाई सरकार से अपील की थी। मानव अधिकार संगठन से जुड़े एक अनुसंधानकर्ता ने कहा था कि मुसलमानों की धार्मिक आस्था का अनादर करके उनके शवों की अंत्येष्टि करना अनुचित है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यकर्ता ने याद दिलाते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय दिशा-निर्देशों में साफ कहा गया है कि कोविड-19 से पीड़ित रहे व्यक्तियों के शवों को जलाया या दफनाया जा सकता है लेकिन श्रीलंका सरकार महामारी का इस्तेमाल मुसलमानों को और अधिक हाशिये पर धकलने के लिए कर रही है। देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं। लेकिन ज्यादातर मुसलमान इस डर से अपनी जांच कराने नहीं गए कि अगर उनकी जांच पॉजिटिव रही और उनकी मौत हो गई, तो उनके शव को जला दिया जाएगा।

हालाँकि इस मुद्दे पर मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन ने श्रीलंका से अनुरोध किया था कि वह मुसलमानों को अपने परिजनों की अंत्येष्टि अपनी धार्मिक आस्था के मुताबिक करने दे। तब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि शव को जलाना या दफनाना दोनों मान्य हैं। श्रीलंकाई सरकार से अनुरोध किया गया था कि वे ऐसे कार्यों से दूर रहें जो विभिन्न धार्मिक समूहों की प्रथाओं के खिलाफ हों। तब मुसलमानों के दाह संस्कार के निर्णय को समाज में पक्षपात, असहिष्णुता और हिंसा को बढ़ावा देने उत्प्रेरक के रूप में देखा गया था ।

अहमद शहीद, फर्नांड डी वर्नेज़, क्लेमेंट न्यलेत्सोस्सी वॉले और ट्लांगेंग मोफोकेंग जैसे विशेष रिपोर्टर्स ने दावा किया है कि कोई भी चिकित्सा या वैज्ञानिक सबूत नहीं था जो यह साबित करता हो कि किसी भी तरह से कोरोनोवायरस पीड़ितों के शवों को दफनाने से इस अत्यधिक संक्रामक बीमारी फैलने का खतरा बढ़ गया है। इसके बावजूद मार्च 2020 में श्रीलंका ने कोविद -19 के लिए देश के स्वास्थ्य दिशानिर्देशों में संशोधन किया जिसके तहत से सभी मृतक कोरोना रोगियों का अंतिम संस्कार करना अनिवार्य हो गया। इसके बाद कई देशों ने श्रीलंका के इस भेदभावपूर्ण, धार्मिक असहिष्णुता का प्रचार करने और धार्मिक समुदायों के बीच भय और अविश्वास का प्रचार करने वाले निर्णय को गलत ठहराया ।

ग़ौर तलब बात यह है कि मुस्लिम बहुल दक्षिण एशियाई देश पाकिस्तान, जो हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर मुस्लिम समुदाय के लिए बोलने में गर्व महसूस करता है, इस मुद्दे पर पूरी तरह से चुप्पी बनाए रहा। पाक की इस खामोशी पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने भी चिंता व्यक्त की थी ।

हालाँकि मालदीव जैसे मुस्लिम देश ने अपनी जमीन की कमी के बावजूद श्रीलंका के मुसलमानों के पास यह कहते हुए पहुंचे कि वह उन्हें दफनाने के लिए जमीन मुहैया कराएंगे। हालाँकि पाकिस्तान इस मुद्दे पर चुप रहा और निंदा या आलोचना का एक शब्द भी नहीं कहा। इससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान मानवीय संकट के बीच मुसलमानों के अधिकारों के बजाय श्रीलंका के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता देता है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान अपने निजी हितों को साधने के लिए श्रीलंका सरकार द्वारा मुस्लिमों के खिलाफ लिए फैसलों को नजरअंदाज कर रहा है।

बात सिर्फ यहीं तक नहीं है बल्कि पाकिस्तान ने लिट्टे के आक्रामक सैन्य अभियानों के दौरान श्रीलंकाई मुस्लिम समुदाय द्वारा सामना किए गए कष्टों की निंदा करने या विभिन्न मंचों पर प्रकाश डालने का कोई प्रयास नहीं किया। दक्षिण एशिया में एक महत्वपूर्ण इस्लामी देश होने के बावजूद पाकिस्तान ने इस द्वीप देश में अल्पसंख्यक मुसलमानों के कष्टों को कम करने के लिए किसी भी तरह की सहायता, वित्तीय या राजनयिक विस्तार नहीं किया।

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