म्यांमार में जब अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय का नरसंहार किया जा रहा था तक सेना और बौद्ध भिक्षु कंधे से कंधा मिलाए हुए थे। बात 2016 से जनवरी 2017 तक हुए रोहिंग्या समुदाय के नरसंहार की हो या अगस्त 2017 से शुरू होने वाले क़त्ले आम की ,म्यांमार सेना के साथ साथ बौद्ध भिक्षुओं ने भी रोहिंग्या समुदाय के क़त्ले आम में भरपूर भाग लिया। लेकिन अब समय ने करवट ली तो वही बौद्ध भिक्षु जो कल तक मौत का फरिश्ता बने हुए थे अब जान बचाने के लिए भागे भागे फिर रहे हैं।
कल तक जिस सेना के साथ मिलकर बौद्ध भिक्षुओं ने रोहिंग्या मुसलमानों का जनसंहार किया था आज उसी सेना के हमलों के डर से पहाड़ों को खोदकर अपनी जान बचाने के प्रयास कर रहे हैं। म्यांमार में सैन्य विद्रोह के बाद सेना के दमन की कार्यवाहियां चल रही हैं। सेना अपने खिलाफ प्रदर्शन करने वाले किसी भी व्यक्ति को छोड़ने के मूड में नही है।
खबर तो यहाँ तक भी है कि सेना अब उन बौद्ध भिक्षुओं को भी नहीं छोड़ रही है जिनके सहयोग से उसने रोहिग्या मुसलमानों का दमन किया था। म्यामांर सेना कल के अपने साथियों की भी दुश्मन हो गई है । थाईलैंड से मिलने वाली म्यांमार सीमा पर मौजूद भिक्षुओं ने पहाड़ों को खोदकर बंकर बनाने शुरू कर दिए हैं। बौद्ध भिक्षु यह काम सेना से अपनी जान बचाने के लिए कर रहे हैं।
सेना की एयर स्ट्राइक के बाद बहुत से बौद्ध भिक्षु, थाईलैंड की ओर पलायन कर रहे हैं। यह लोग अब बार्डर के पास जा छिपे हैं। जान बचाने के लिए घर बार छोड़ कर भाग रहे भिक्षु पहाड़ों को काटकर छुपने के लिए सुरक्षित जगह बना रहे हैं। भिक्षुओं को डर सता रहा है कि उनकी तलाश में सेना कहीं पर भी हमला कर सकती है।