इज़रायल की सीना ज़ोरी, (WHO) को हमास का समर्थक घोषित किया
यह ग़ाज़ा में इज़रायली सेना की बर्बरता और अत्याचार है कि उसने ग़ाज़ा के सबसे बड़े अस्पताल, अल-शिफ़ा को नष्ट कर दिया। यहां मरीजों के इलाज के दौरान हमले किए गए। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चिंता व्यक्त करते हुए अल-शिफ़ा अस्पताल को ‘डेड जोन’ घोषित कर दिया और इज़रायली सेना को अस्पताल खाली कराकर WHO को सौंपने का निर्देश दिया, लेकिन निर्देशों का पालन करने के बजाय इज़रायल ने (WHO) को हमास का सहयोगी घोषित कर दिया।
यह याद रखना चाहिए कि पिछले रविवार को WHO की एक टीम ने ग़ाज़ा में अल-शिफ़ा अस्पताल का दौरा करने के बाद घोषणा की थी कि अल-शिफ़ा अस्पताल एक ‘डेड ज़ोन’ में बदल गया है। यानी लगातार मौतें हो रही हैं और इज़रायली सेना और उसके टैंक मरीजों के इलाज में बाधा डाल रहे हैं। ऐसे में इस अस्पताल को (सैनिकों से) खाली कर जल्द से जल्द WHO को सौंप दिया जाना चाहिए, लेकिन इज़रायल ने इस निर्देश को मानने से पूरी तरह इनकार कर दिया है। बल्कि उसने WHO को हमास का सहयोगी बता दिया है।
यह भी याद रखना चाहिए की इज़रायल ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा युद्ध-विराम प्रस्ताव पारित होने के बाद भी लगातार ग़ाज़ा पर वहशियाना हमला जारी रखा है, जिसमे 14000 से ज़्यादा बेगुनाह मारे जा चुके हैं जिसमे केवल मासूम बच्चों की संख्या 7000 हज़ार के क़रीब है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक दिन पहले इज़रायली सरकार के प्रवक्ता एलन लेवी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान WHO को हमास के अस्पतालों में मरीजों को ‘मानव ढाल’ में बदलने की रणनीति का समर्थक बताया था। उन्होंने कहा, ”अगर WHO की गंभीर लापरवाही के कारण मानव जीवन की हानि होती है, तो इसके लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन जिम्मेदार होगा।
उन्होंने इस बात से साफ़ इनकार किया है कि इज़रायली सेना अल-शिफ़ा अस्पताल को विश्व स्वास्थ्य संगठन को सौंपने जा रही है। इज़रायली मंत्री के इस बयान से अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक हैरान हैं। याद रहे कि जब WHO की टीम ने अल-शिफ़ाअस्पताल का दौरा किया था तो पाया था कि इलाज के इंतजाम के लिए वहां से सेना को हटाना जरूरी है।
जबकि मरीजों को विभिन्न प्रकार की चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है जो वर्तमान स्थिति में उपलब्ध कराना संभव नहीं है।