ताजिकिस्तान में हिजाब और विदेशी ड्रेस पर प्रतिबंध

ताजिकिस्तान में हिजाब और विदेशी ड्रेस पर प्रतिबंध

ताजिकिस्तान सरकार ने हाल ही में एक नया कानून पारित किया है जिसके तहत हिजाब और विदेशी परिधानों पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस कानून का उद्देश्य राष्ट्रीय पहचान और संस्कृति को बनाए रखना बताया जा रहा है। सरकार का कहना है कि यह कदम ताजिक समाज में एकरूपता और राष्ट्रीय संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए उठाया गया है।

कानून की मुख्य बातें:
हिजाब पर प्रतिबंध: सार्वजनिक स्थानों, सरकारी कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। जो महिलाएं इस कानून का उल्लंघन करेंगी, उन्हें आर्थिक दंड का सामना करना पड़ सकता है।

विदेशी परिधानों पर रोक:
पश्चिमी देशों की फैशन के अनुसार पहने जाने वाले कपड़ों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसमें जींस, टी-शर्ट और अन्य आधुनिक परिधानों को शामिल किया गया है।

परंपरागत कपड़ों का समर्थन:
सरकार ने नागरिकों को परंपरागत ताजिक कपड़े पहनने के लिए प्रोत्साहित किया है और इन कपड़ों को अधिक से अधिक अपनाने की अपील की है। ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन ने कहा कि यह कानून देश की सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने और चरमपंथी विचारधाराओं को रोकने के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ताजिकिस्तान की संस्कृति और परंपराएं हमारे लिए गर्व का विषय हैं और हमें इन्हें संजोकर रखना चाहिए।

जनता की प्रतिक्रिया:
इस नए कानून को लेकर ताजिकिस्तान की जनता में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे देश की संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन के रूप में देख रहे हैं। विशेष रूप से महिलाएं और युवा वर्ग इस कानून से नाराज हैं और उनका कहना है कि यह उनके पहनावे की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस कानून की आलोचना
मानवाधिकार संगठनों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में देखा है और ताजिकिस्तान सरकार से इस कानून को वापस लेने की मांग की है। उनका कहना है कि हर व्यक्ति को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान व्यक्त करने का अधिकार है और इस प्रकार के कानून उस अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

ताजिकिस्तान में हिजाब और विदेशी परिधानों पर प्रतिबंध लगाने वाला यह नया कानून राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बन गया है। जहां एक तरफ इसे देश की सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक अधिकारों के हनन के रूप में भी देखा जा रहा है। आने वाले दिनों में इस कानून का प्रभाव और इसकी प्रतिक्रिया कैसी होती है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

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