युद्ध-विराम प्रस्ताव पर वीटो करने के लिए पूरे विश्व में अमेरिका की कड़ी निंदा

युद्ध-विराम प्रस्ताव पर वीटो करने के लिए पूरे विश्व में अमेरिका की कड़ी निंदा

ग़ाज़ा में फिलिस्तीनियों के नरसंहार को रोकने के लिए तत्काल मानवीय युद्ध-विराम के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्तुत एक प्रस्ताव को अमेरिकी वीटो द्वारा एक बार फिर खारिज कर दिया गया, जबकि उसका सहयोगी ब्रिटेन मतदान से दूर रहा।इन दोनों देशों के अलावा 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद के सभी 13 देशों ने युद्धविराम के समर्थन में वोट किया। युद्ध-विराम प्रस्ताव पर वीटो करने और शांति प्रयासों को विफल करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को दुनिया भर में आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

मानवाधिकार संगठनों ने कहा है कि अमेरिका के यह कार्य उसे ग़ाज़ा में इज़रायल के युद्ध अपराधों में बराबर का भागीदार बनाते हैं। ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने हमले की शुरूआत में ही कह दिया था कि, इज़रायल द्वारा किए जा रहे अत्याचारों में अमेरिका बराबर का भागीदार है। उधर, फिलिस्तीन ने अमेरिका की इस हरकत को भड़काऊ बताया है, जबकि हमास ने वॉशिंगटन पर अमानवीय और अनैतिक व्यवहार का आरोप लगाया है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य देश हैं, जिनमें 5 स्थायी सदस्य (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस) शामिल हैं, जिनके पास किसी भी प्रस्ताव को वीटो करने की शक्ति है। संयुक्त अरब अमीरात द्वारा प्रस्तुत युद्धविराम प्रस्ताव पर 8 दिसंबर की रात (भारतीय समय के अनुसार 9 दिसंबर को अली अल-सबा) मतदान हुआ जिसमें 13 सदस्यों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। ब्रिटेन ने वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग नहीं किया, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने इज़राइल का समर्थन करते हुए प्रस्ताव पर वीटो कर दिया।

वाशिंगटन का कहना है कि इस तरह के युद्ध-विराम से युद्ध को लेकर चल रहे कूटनीतिक प्रयासों को नुकसान हो सकता है। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सुरक्षा परिषद से ग़ाज़ा में मानवीय युद्ध-विराम का समर्थन करने की अपील की थी। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 99 के तहत जारी बयान में इस युद्धविराम के समर्थन पर जोर दिया। इस अनुच्छेद के तहत, संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख किसी भी मामले पर सुरक्षा परिषद का ध्यान आकर्षित कर सकता है, जो उसकी राय में, अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। ऐसा पहली बार है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इस शक्ति का प्रयोग किया है।

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