युद्ध-विराम समझौता इज़रायल की स्पष्ट हार है

युद्ध-विराम समझौता इज़रायल की स्पष्ट हार है

7 अक्टूबर 2023 से 18 जनवरी 2025 तक ग़ाज़ा पर जारी हवाई और ज़मीनी हमलों में, इज़रायल ने भले ही मानवता के खिलाफ अपराध करते हुए 47,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों को शहीद कर दिया हो और ग़ाज़ा को खंडहर में तब्दील कर दिया हो, लेकिन युद्ध का परिणाम उसके पक्ष में नहीं रहा। युद्ध-विराम समझौता उसकी स्पष्ट हार को दर्शाता है। इस बात को इज़रायल के प्रमुख अख़बार “टाइम्स ऑफ़ इज़रायल ” ने भी स्वीकार किया है। इस अखबार के लेखक डेविड के रीस ने संकेत दिया है कि इज़रायल इस युद्ध में उन उद्देश्यों को हासिल नहीं कर सका, जिनके लिए उसने यह युद्ध शुरू किया था।

“हमास की स्पष्ट जीत और इज़रायल की हार”
“टाइम्स ऑफ़ इज़रायल” ने युद्ध-विराम समझौते को हमास की जीत करार देते हुए लिखा है कि, “16 वर्षों से (जब से ग़ाज़ा में हमास की सरकार है) इज़रायल अपनी रक्षा के लिए बार-बार युद्ध करने पर मजबूर हुआ है। उसने 1948, 1967 और 1973 की लड़ाइयों में जीत हासिल की थी। 2016 में हिज़्बुल्लाह के साथ लड़ाई में मामला बराबरी पर समाप्त हुआ, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। हमास के साथ जो शांति समझौता हुआ है, वह हमास की स्पष्ट जीत और इज़रायल की हार है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि ग़ाज़ा में लोग जश्न मना रहे हैं।”

इज़रायल की असफलता 14 बिंदुओं में
“टाइम्स ऑफ़ इज़रायल” ने 14 बिंदुओं के जरिए यह समझाया है कि इस युद्ध में हमास की जीत कैसे हुई है। अखबार के अनुसार, इस युद्ध का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि वैश्विक स्तर पर जनमत इज़रायल के खिलाफ हो गया है। दूसरा, इसके मुख्य सहयोगी अमेरिका के साथ इसके संबंधों में गंभीर दरार आ गई है। डोनाल्ड ट्रंप की टीम ने उनके शपथ ग्रहण से पहले ही तेल अवीव के साथ सख्ती से पेश आते हुए उन्हें उन्हीं शर्तों पर युद्ध-विराम पर सहमति के लिए मजबूर कर दिया, जिन्हें पहले इज़रायल ने खारिज कर दिया था।

फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार और इज़रायल की असफलता
15 महीनों तक ग़ाज़ा पर बमबारी कर उसे खंडहर में बदल देने और हर इलाके में सेना की घुसपैठ के बावजूद, इज़रायल एक भी बंधक को रिहा नहीं करा सका। इसके बजाय, हमास के सामने झुकते हुए एक बंधक की रिहाई के लिए 30 फ़िलिस्तीनी कैदियों को रिहा करना पड़ा। इसके अलावा, हमास की हिरासत में मौजूद एक महिला इज़रायली सैनिक के बदले में, तेल अवीव को प्रत्येक सैनिक के लिए 50 कैदियों को रिहा करना होगा। अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक भी सवाल उठा रहे हैं कि अगर 15 महीनों तक चली बमबारी के बावजूद, इज़रायल को इतनी बड़ी रियायत देनी पड़ी, तो यह युद्ध इज़रायल के लिए बेनतीजा साबित हुआ।

युद्ध के उद्देश्यों में असफलता
डेविड के रीस ने लिखा है कि इज़रायल ने युद्ध की शुरुआत करते समय हमास के खात्मे को अपना मुख्य लक्ष्य बताया था, लेकिन इसमें वह पूरी तरह असफल रहा। “टाइम्स ऑफ़ इज़रायल ” ने स्वीकार किया है कि इज़रायल ने हमास के कुछ नेताओं को जरूर शहीद किया, लेकिन उनकी जगह नए नेता आ गए हैं। युद्ध के अंत के बाद भी ग़ाज़ा में हमास के 12,000 लड़ाके मौजूद हैं। लेखक ने कहा है कि नेतन्याहू के नेतृत्व वाली सरकार ने ऐसा कुछ भी हासिल नहीं किया है जो 6 अक्टूबर 2023 से पहले उसके पास नहीं था।

अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर प्रभाव
युद्ध के दौरान ग़ाज़ा में हमास ने 400 से अधिक इज़रायली सैनिकों को मार गिराया। इसके साथ ही, इज़रायल की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ। युद्ध की वजह से आर्थिक गतिविधियों में 20% की गिरावट आई, और देश पर कर्ज का भारी बोझ बढ़ गया।

युद्ध-विराम समझौते के परिणाम
युद्ध-विराम समझौता तीन चरणों में होगा। पहले चरण में, 33 बंधकों की रिहाई के बदले 1,904 फ़िलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया जाएगा। अगले दो चरणों की शर्तों पर आगे चर्चा की जाएगी। “टाइम्स ऑफ़ इज़रायल” के लेखक ने आशंका जताई है कि हमास अगले चरणों में इज़रायल की शर्तों को मानने से इनकार कर सकता है।

हमास की मजबूती और इज़रायल की कमजोरी
हमास ने साबित कर दिया है कि वह इज़रायल को भारी कीमत चुकाने के लिए मजबूर कर सकता है। 7 अक्टूबर 2023 के हमले के बाद इज़रायल अब कमजोर स्थिति में है। इस युद्ध में इज़रायल को ग़ाज़ा से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा है। ग़ाज़ा में हमास का कब्जा अभी भी बरकरार है, और वहां पुनर्निर्माण के लिए दुनिया भर से मदद मिल रही है।

नेतन्याहू ने इज़रायल को युद्ध में हार का सामना करवाया
युद्ध ने अमेरिका और इज़रायल के संबंधों में खटास पैदा कर दी है। लेखक ने युद्ध की असफलता के लिए प्रधानमंत्री नेतन्याहू को ज़िम्मेदार ठहराया है। उन्होंने आरोप लगाया कि नेतन्याहू ने यह युद्ध केवल अपनी सत्ता बचाने के लिए थोपा था। इतिहास में नेतन्याहू ऐसे प्रधानमंत्री के तौर पर याद किए जाएंगे, जिन्होंने इज़रायल को युद्ध में हार का सामना करवाया।

“क्राइम मिनिस्टर नेतन्याहू” की तख़्ती सड़कों पर विरोध प्रदर्शन
हमास की सबसे बड़ी कामयाबी और सफलता यह है कि, ग़ाज़ा पट्टी में 47,000 निर्दोष नागरिकों के “नरसंहार” और लाखों लोगों के घायल होने के बाद भी ग़ाज़ा की जनता खुल कर हमास के समर्थन में कड़ी है, जबकि इज़रायल और यूरोपीय देशों में नेतन्याहू प्रशासन के ख़िलाफ़ में लाखों लोगों ने सड़क पर आकर विरोध प्रदर्शन किया और “स्वतंत्र फ़िलिस्तीन” की मांग की। इज़रायल में नेतन्याहू के संबोधन के दौरान ही लोगों ने “नेतन्याहू शर्म करो” के नारे लगाते हुए उनके भाषण को बीच में ही रोक दिया था। इतना ही नहीं, तेल अवीव में हज़ारो लोगों ने “प्राइम मिनिस्टर नेतन्याहू” की जगह “क्राइम मिनिस्टर नेतन्याहू” की तख़्ती हाथों में लेकर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया

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