इज़रायल की 1500 फिलिस्तीनियों को “अलक़ुद्स” से विस्थापित करने की योजना

इज़रायल की 1500 फिलिस्तीनियों को “अलक़ुद्स” से विस्थापित करने की योजना

फिलिस्तीन के विदेश मंत्रालय ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इज़रायल यरुशलम के अल-बुस्तान इलाके को पूरी तरह से ध्वस्त करने और वहां से 1500 से अधिक फिलिस्तीनियों को जबरन विस्थापित करने की योजना बना रहा है। यह कदम यरुशलम के सिलवान क्षेत्र में अल-बुस्तान एसोसिएशन के मुख्यालय को तोड़ने के साथ शुरू किया गया है।

“अलक़ुद्स” के यहूदीकरण की कोशिश
फिलिस्तीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस कार्रवाई का उद्देश्य यरुशलम में फिलिस्तीनी मूल निवासियों की मौजूदगी को खत्म करना और क्षेत्र का यहूदीकरण करना है। इज़रायल लंबे समय से यरुशलम को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ अपने क्षेत्र में शामिल करने और इसे यहूदी बहुल क्षेत्र बनाने की कोशिश कर रहा है। यह साजिश न केवल फिलिस्तीनियों की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को मिटाने का प्रयास है, बल्कि इसे नस्लीय सफाए और जबरन विस्थापन का सबसे खतरनाक रूप बताया जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन
फिलिस्तीन के विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि इज़रायल के ये सभी कदम अंतर्राष्ट्रीय कानून, हस्ताक्षरित समझौतों और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का खुला उल्लंघन हैं। खासतौर पर जिनेवा कन्वेंशन और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 2334 का उल्लंघन करके इज़रायल अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति को वैध ठहराने की कोशिश कर रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील
फिलिस्तीन के विदेश मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से आग्रह किया है कि वह इज़रायल के इन अवैध और अमानवीय कृत्यों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद को अपनी बची हुई साख को बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को लागू करना चाहिए। विशेष रूप से प्रस्ताव 2334, जो इज़रायल को अवैध बस्तियों और यरुशलम के यहूदीकरण पर रोक लगाने के लिए बाध्य करता है।

यरुशलम के भविष्य पर मंडराता खतरा
इस पूरी घटना से यह स्पष्ट है कि यरुशलम, जो कई धर्मों और संस्कृतियों का केंद्र है, इज़रायल की योजनाओं के चलते गंभीर संकट में है। इज़राइल की इन कार्रवाइयों से न केवल फिलिस्तीनियों के लिए संकट खड़ा हो गया है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और शांति की संभावनाओं को भी खतरा है।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए यह समय है कि वह अपनी चुप्पी तोड़े और फिलिस्तीनियों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए।

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