हिज़्बुल्लाह द्वारा ग़ाज़ा के समर्थन के फ़ैसले में ईरान शामिल नहीं था: लेबनानी प्रतिनिधि
फार्स न्यूज़ एजेंसी के अंतर्राष्ट्रीय समूह ने हसन फज़लुल्लाह का लेबनान के अल-मनार नेटवर्क के साथ एक साक्षात्कार प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने कहा: “कोई भी उस उपलब्धि तक नहीं पहुंचा है जो शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह, हिज़्बुल्लाह के पूर्व महासचिव, ने हासिल की थी। उनकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक उनकी ईमानदारी और सच्चाई थी।”
उन्होंने कहा: “शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह अगली दुनिया (आखिरत) के व्यक्ति थे, न कि इस दुनिया (दुनिया) के, और उन्होंने नैतिक मूल्यों के लिए एक स्कूल स्थापित किया।”
फज़लुल्लाह ने कहा: “सैयद हसन नसरुल्लाह के लिए लोगों की गरिमा और प्रतिरोध एक लाल रेखा थी। उन्होंने कहा, “सैयद हसन नसरल्लाह ने विरासत, शाम (सीरिया) की भूमि की विरासत और विद्वानों की विरासत के मुद्दे पर ध्यान दिया।”
लेबनान की संसद के इस सदस्य ने जोर देकर कहा: “गाजा का समर्थन करने के हिज़्बुल्लाह के फैसले में ईरान ने हस्तक्षेप नहीं किया, और सैयद हसन नसरुल्लाह के समय में यह एक लेबनानी फैसला था, और शेख नईम कासिम, हिज़्बुल्लाह के वर्तमान महासचिव के समय में भी यह एक लेबनानी फैसला है।”
फज़लुल्लाह ने यह भी कहा: “शहीद सैयद हाशिम सफ़ी अल-दीन एक दिव्य विद्वान, प्रबुद्ध, लेखक, गहरी दृष्टि वाले, प्रबंधक और योजनाकार थे, और उन्होंने हिज़्बुल्लाह के मामलों का प्रबंधन किया और मैदान के नेतृत्व में केंद्रीय भूमिका निभाई।”
बता दें, ग़ाज़ा पट्टी में इज़रायल द्वारा किए गए नरसंहार और अत्याचार के ख़िलाफ़ अगर किसी ने सबसे ज़्यादा आवाज़ बुलंद की थी तो वो था हिज़्बुल्लाह समूह। शहीद हसन नसरुल्लाह को आज़ाद फ़िलिस्तीन का सबसे बड़ा समर्थक माना जाता था। हमास के लड़ाकों ने हिज़्बुल्लाह और यमन के हूतियों का युद्धविराम के समय शुक्रिया अदा किया था।
हमास ने पंद्रह महीने इज़रायली बमबारी के बाद भी हार नहीं मानी और इज़रायल को युद्ध- विराम समझौते की मेज़ पर आने के लिए मजबूर कर दिया। अंतरर्राष्ट्रीय मीडिया ने इसे हमास की सबसे बड़ी जीत और इज़रायल की सबसे बड़ी हार बताया है।