अल्लाहो अकबर की सदाओं से गूंजा ईरान, धूमधाम से मनाई जा रही है इस्लामी क्रांति की वर्षगांठ
ईरान इस्लामी क्रांति की 43वीं वर्षगांठ मना रहां है। काल रात 9 बजे पूरा ईरान अल्लाहो अकबर के गगनभेदी नारों से गूँज उठा। कल स्थानीय समायानुसार रात 9 बजे पूरे देश में अल्लाहो अकबर के गगन भेदी नारे गूँज रहे थे वहीँ आज देश के कोने कोने में अमेरिका मुर्दाबाद और इस्लामी ईरान के समर्थन में नारों के साथ रैलियां निकाली गयी।
ईरानी कैलेंडर के बहमन महीने की बाईस तरीख की रात में ईरानी जनता अपने घरों की छतों पर चढ़कर अल्लाहो अकबर के नारे लगाती है और ख़ुशियां मनाती है। 22 बहमन सन 1357 हिजरी शम्सी को ईरान में इस्लामी क्रांति सफल हुई थी। इस उपलक्ष्य में पूरे ईरान में रैलियों और प्रदर्शनों का आयोजन होता है और ईरानी जनता क्रांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाने के लिए इन प्रदर्शनों में भाग लेती है।
गत वर्ष की तरह ही इस साल भी कोविड 19 के कारण यह रैलियां स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का ध्यान रखते हुए अलग अलग शहरो में नए नए अंदाज़ से निकाली गयी। कहीं कारों के काफिले थे तो कहीं मोटर साइकल पर सवार जवान तो कहीं साइकिल रैली। हर ओर देश प्रेम और इस्लामी क्रांति के मतवाले हाथों में देश का परचम लिए देश से वफादारी और साम्राज्यवाद के खिलाफ उठा खड़े होने के जज़्बे से भरपूर नज़र आ रहे हैं।
इन रैलियों में महिला, पुरूष, बच्चे और बूढ़े सब ही आए हैं। दूर से ही लोगों का भव्य जनसमूह दिखाई दे रहा है जिनके, अल्लाहो अकबर-के गगनभेदी नारों से, पूरा माहौल गूँज रहा है।
बता दें कि शाह के काल में ईरान, क्षेत्र में अमेरिका का सब से बड़ा घटक समझा जाता था। यही कारण था कि अमेरिका को ईरान के राजनीतिक परिवर्रतनों से गहरी रूचि थी और वह यह बात भलीभांति जानता था कि यदि ईरान में इस्लामी क्रान्ति सफल हो गयी तो फिर उस के हित ख़तरे में पड़ जाएंगे। अमेरिका ने ईरान की इस्लामी क्रान्ति के आरंभ से लेकर अंतिक दिनों तक इसे रोकने का भरपूर प्रयास किया।
ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद से ही ईरान और अमेरिका के संबंधों में आयी खटास दिन प्रतिदन बढ़ती जा रही और ईरान की जनता भी नट तक अमेरिका और साम्राज्यवाद के खिलाफ डट कर खड़ी है जो आज भी उनके नारों और बयानों तथा रैलियों में उठाये गए प्लेकार्ड और बैनरों से भलीभांति समझी जा सकती है।