ग़ाज़ा की सड़कों पर पड़े शव, आवारा कुत्तों का भोजन बन रहे

ग़ाज़ा की सड़कों पर पड़े शव, आवारा कुत्तों का भोजन बन रहे

ग़ाज़ा पट्टी में चिकित्सा राहत संगठन के प्रमुख मोहम्मद अबू अफश ने उत्तरी ग़ाज़ा की सड़कों पर फिलीस्तीनी शहीदों के शवों के पड़े रहने के कारण गंभीर पर्यावरणीय संकट होने की चेतावनी दी है। उन्होंने एक बयान में कहा कि बहुत से शव सड़कों पर पड़े हुए हैं क्योंकि इन तक पहुंचने का कोई तरीका नहीं है, और दुर्भाग्यवश आवारा कुत्ते और बिल्लियाँ इन शवों को खा रहे हैं, जो एक गंभीर पर्यावरणीय आपदा का संकेत है।

ग़ाज़ा पट्टी में फिलीस्तीनी शहीदों के शवों के पड़े होने की घटना न केवल एक मानवीय त्रासदी है, बल्कि यह एक बड़ी पर्यावरणीय आपदा का संकेत भी है। ग़ाज़ा में लगातार हो रहे बमबारी और संघर्ष के कारण शवों का पुनर्प्राप्ति और दफनाने का कोई उचित प्रबंध नहीं किया जा सका है। इसके परिणामस्वरूप, उत्तरी ग़ाज़ा की सड़कों पर शव पड़े हुए हैं, जिनके पास कोई भी पहुंच नहीं सकता। इन शवों को असंवेदनशीलता से छोड़ दिया गया है और आवारा कुत्ते और बिल्लियाँ इन्हें खा रहे हैं, जो स्थिति को और भी विकट बना रही है।

मोहम्मद अबू अफश, जो ग़ाज़ा में चिकित्सा राहत संगठन के प्रमुख हैं, ने इस स्थिति को “गंभीर पर्यावरणीय संकट” के रूप में वर्णित किया है। उनका कहना है कि यह केवल मानवीय त्रासदी नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय समस्या भी बन चुकी है। शवों का सड़ना, गंदगी का फैलना, और उसके परिणामस्वरूप होने वाली बीमारियाँ एक गंभीर चिंता का विषय हैं।

पिछले सप्ताह, अल-जज़ीरा के संवाददाता ने भी इस समस्या को उठाया था, और यह बताया था कि फिलीस्तीनी शहीदों के शवों को सड़कों पर पड़े रहने के कारण स्वास्थ्य संकट बढ़ रहा है। शवों को न तो दफनाया जा सकता है और न ही कोई उन्हें ले जाकर उचित तरीके से सम्मानजनक रूप से अंतिम संस्कार कर सकता है। इस प्रकार, ग़ाज़ा की सड़कों पर शहीदों के शवों की उपस्थिति एक खौ़फनाक स्थिति को दर्शाती है, जो युद्ध के विनाशकारी परिणामों को दर्शाती है।

इसके अलावा, इज़रायली सेना द्वारा ग़ाज़ा के चार स्कूलों की बमबारी भी एक और भयावह घटना है। इन स्कूलों को शरणार्थियों के लिए शरण स्थल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था, जहां लाखों लोग शरण लिए हुए थे। बमबारी के दौरान इन स्कूलों में रहने वाले कई लोग मारे गए और भारी तबाही हुई। ग़ाज़ा के सिविल डिफेंस के प्रवक्ता महमूद बासिल ने यह बताया कि बाटे हन्नान के खलील औएज़ा स्कूल में शहीदों के शव पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं, और कुछ शवों के अंगों को काट दिया गया है, जो अत्यधिक हिंसा और क्रूरता को दर्शाता है।

यह खबर न केवल ग़ाज़ा के नागरिकों की भयानक स्थिति को बयान करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि इस युद्ध के मानवीय परिणाम कितने गंभीर और विकराल हो चुके हैं। इन घटनाओं से पूरी दुनिया को यह समझने की आवश्यकता है कि संघर्ष और हिंसा के परिणाम केवल एक निश्चित समय के लिए सीमित नहीं होते, बल्कि इनका असर लंबे समय तक समाज, पर्यावरण और मानवता पर पड़ता है।

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