जानकार सूत्रों ने बताया कि ग़ज़्ज़ा के हालिया युद्ध में इस्लामी प्रतिरोध आंदोलनों के मिज़ाइलों के डर से ज़ायोनी शासन के युद्धपोतों ने ग़ज़्ज़ा से निकट होने की हिम्मत नहीं की।
फ़ार्स न्यूज़ एजेंसी के अनुसार जानकार सूत्रों ने अल मयादीन नेटवर्क को बताया कि ग़ज़्ज़ा की तीन दिवसीय लड़ाई में ज़ायोनी शासन के युद्धपोतों ने युद्ध में भाग नहीं लिया और ग़ज़्ज़ा के तट के निकट नहीं हुए।
इन सूत्रों का कहना कहना है कि साक्ष्यों से पता चलता है कि ज़ायोनी शासन को डर था कि फ़िलिस्तीन के जेहादे इस्लामी आंदोलन की सैन्य शाखा अलक़ुद्स ब्रिगेड के पास हालिया युद्ध के दौरान सतह से समुद्र में मार करने वाले मिज़ाइल थे।
इस संबंध में जेहादे इस्लामी से जुड़े सूत्रों ने अल मयादीन के साथ बातचीत में ऐसे मीज़ाइलों के नियंत्रण में होने से इनकार या पुष्टि नहीं की है लेकिन उन्होंने कहा है कि जेहादे इस्लामी के पास निस्संदेह ऐसे हथियार हैं जो ज़ायोनी शासन के समीकरणों को तबाह कर सकते हैं।
5 अगस्त को ज़ायोनी शासन ने ग़ज़्ज़ा में “भोर” नामक एक आप्रेशन शुरू किया था जबकि जेहादे इस्लामी ने एक मैदाने जंग नामक आप्रेशन से उसका जवाब दिया था। यह संघर्ष तीन दिनों तक चला जिसके बाद मिस्र की मध्यस्थता से संघर्ष विराम हुआ।
इस तीन दिवसीय युद्ध के परिणामों के बारे में इस्राईल के हारेत्ज़ नामक अख़बार ने 12 अगस्त को एक लेख में इस हमले के परिणामों का विश्लेषण किया और लिखा कि अगर यह जेहादे इस्लामी है तो फिर हिज़्बुल्लाह और हमास के साथ लड़ाई कैसी होगी?
इस लेख में इस्राईली लेखक येस्राइल हरेईल ने लिखा कि सुरक्षा संस्थान जेहादे इस्लामी आंदोलन को एक कमज़ोर और अस्थायी संगठन कहते हैं, एक ऐसा संगठन जिसने पिछले सप्ताह इस्राईल बस्तियों के कई निवासियों को डरा दिया था और हमारी धरती पर बड़े पैमाने पर रॉकेट और मीज़ाइल फ़ायर किए और फ़ायर करने की क्षमता रखता है, क्या यह क्या यह अस्थायी संगठन है?