सदन में नोट के बदले वोट, भाषण, या प्रश्न पर मुक़दमा चलेगा: सुप्रीम कोर्ट
रिश्वत लेकर सदन में वोट दिया या सवाल पूछा या भाषण दिता तो, सांसदों या विधायकों को विशेषाधिकार के तहत मुकदमे से छूट नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने सोमवार को 25 साल पुराना फैसला पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 4 मार्च को 1998 के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कानून बनाने वाले सांसदों और विधायकों को सवाल या भाषण के बदले रिश्वत का मामले पाए जाने पर सजा से छूट की बात कही गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम उस फैसले से असहमत हैं।
1998 में 5 जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि संसद या विधानसभा में कही या की गई किसी भी बात के संबंध में अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत विधायकों को दी गई छूट सदन के सामूहिक कामकाज से जुड़ी है।
अदालत ने कहा- “दावा किया गया विशेषाधिकार (विधायकों को छूट) का सदन के सामूहिक कामकाज से संबंध होना चाहिए और विधायक के आवश्यक कार्यों से भी संबंध होना चाहिए जिनका उन्हें निर्वहन करना है। लेकिन अदालत ने आगे कहा-
अदालत ने कहा- ये सारे प्रावधान इसलिए किए गए थे ताकि सदन में स्वतंत्र विचार-विमर्श का माहौल बना रहे। लेकिन अगर किसी सदस्य को भाषण या सवाल पूछने या न पूछने देने के लिए रिश्वत दी जाती है तो इस तरह का माहौल खराब हो जाएगा। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि “संविधान के अनुच्छेद 105 (2) या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है।”
यह मामला झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के सांसदों के रिश्वत कांड पर आए आदेश से जुड़ा है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा था। आरोप था कि सांसदों ने 1993 में नरसिम्हा राव सरकार को समर्थन देने के लिए वोट दिया था। इस मसले पर 1998 में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। अब 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया है।
यह मुद्दा दोबारा तब उठा, जब JMM सुप्रीमो शिबु सोरेन की बहू और विधायक सीता सोरेन ने अपने खिलाफ जारी आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने की याचिक दाखिल की। उन पर आरोप था कि उन्होंने 2012 के झारखंड राज्यसभा चुनाव में एक खास प्रत्याशी को वोट देने के लिए रिश्वत ली थी। सीता सोरेन ने अपने बचाव में तर्क दिया था कि उन्हें सदन में ‘कुछ भी कहने या वोट देने’ के लिए संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट हासिल है।
लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने इसे और भी साफ करते हुए कहा कि संसद में विचारों का मुक्त आदान-प्रदान ही अनुच्छेद 105 और 194 में प्रावधानों द्वारा संरक्षित हैं। लेकिन इसमें रिश्वतखोरी को कोई छूट नहीं मिली हुई है। अदालत ने कहा- “यह (भय या पक्षपात के बिना भाषण या कार्रवाई) तब छिन जाती है जब किसी सदस्य को रिश्वत के कारण एक निश्चित तरीके से वोट देने के लिए प्रेरित किया जाता है और यह भारतीय संवैधानिक लोकतंत्र की नींव को कमजोर करता है।”