चुनावी फायदे के लिए ‘न्याय की हत्या’ की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक: राहुल गांधी

चुनावी फायदे के लिए ‘न्याय की हत्या’ की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक: राहुल गांधी

गुजरात सरकार के अगस्त 2022 के फैसले में बिलक़ीस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को छूट दी गई थी। दोषियों की रिहाई का देश में बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था।उन्हें केवल छूट ही नहीं दी गई थी बल्कि गैंगरेप के आरोपियों का मिठाई खिला कर स्वागत भी किया गया था। गैंगरेप के आरोपियों का मिठाई खिलाकर स्वागत किए जाने से पूरा देश स्तब्ध था, क्योंकि यह देश की चुनिंदा घटनाओं में से एक था।

छूट देने का एक कारण यह बताया गया था कि जेल में उनका आचरण अच्छा था। हालांकि यह दलील किसी के गले से नीचे नहीं उत्तरी थी। सबका यही प्रश्न था कि गैंगरेप के आरोपियों क आचरण अच्छा कैसे हो सकता है? और क्या अच्छे आचरण के कारण दूसरे क़ैदियों की भी सज़ा माफ़ की जाएगी।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने बयान को सोशल मीडिया एक्‍स पर जारी किया और लिखा, ”चुनावी फायदे के लिए ‘न्याय की हत्या’ की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है। आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर देश को बता दिया कि ‘अपराधियों का संरक्षक’ कौन है। बिलक़ीस बानो का अथक संघर्ष, अहंकारी भाजपा सरकार के विरुद्ध न्याय की जीत का प्रतीक है।”

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा- “गुजरात सरकार द्वारा बिलक़ीस बानो के 11 बलात्कारियों की रिहाई को रद्द करने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला महिलाओं के प्रति भाजपा की क्रूर उपेक्षा को उजागर करता है! यह उन लोगों के चेहरे पर तमाचा है जिन्होंने इन अपराधियों की अवैध रिहाई में मदद की और उन लोगों के चेहरे पर भी तमाचा है जिन्होंने न्याय पर बुलडोजर चलाकर दोषियों को मालाएं पहनाईं और उन्हें मिठाइयां खिलाईं। भारत न्याय प्रशासन को पीड़ित या अपराध करने वाले के धर्म या जाति पर निर्भर नहीं होने देगा।

बता दें कि, आज सोमवार को बिलक़ीस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए 11 दोषियों की रिहाई रद्द कर दी है। इस मामले में उच्चतम न्यायलय का मानना है कि, गुजरात नहीं महाराष्ट्र सरकार दोषियों की रिहाई का फैसला ले सकती है। गुजरात सरकार द्वारा बिलकिस बानो रेप केस के अपराधियों को रेमिशन दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ याचिका लगाई गई थी। जस्टिस बीवी नागराथन की अध्यक्षता में पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी।

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