धर्म संसद से अब संघ ने भी पल्ला झाड़ा, कहा हिंदुत्व से कोई संबंध नहीं
उत्तराखंड के हरिद्वार और छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुई तथाकथित धर्म संसद और यहां हुई नफरत ही बयानबाजी से आरएसएस ने भी पल्ला झाड़ते हुए कहा कि इसका हिंदुत्व से कोई संबंध नहीं है।
धर्म संसद में हुई बयानबाज़ी को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने बेहद सीधे और सपाट लहजे में कहा के धर्म संसद के बैनर तले आयोजित होने वाले कार्यक्रम का हिंदुत्व से कोई संबंध नहीं है। धर्म संसद के बैनर तले होने वाली हरिद्वार और रायपुर के तथाकथित बैठक में समुदाय विशेष के कत्लेआम एवं हिंदू राष्ट्र की स्थापना का आह्वान किया गया था।
मोहन भागवत ने धर्म संसद के बैनर तले आयोजित हुए हिंदुत्व और हिंदू से जुड़ी बातों से खुद को किनारे कर लिया है। उन्होंने धर्म संसद में हुई बातों से असहमति जताई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के प्रमुख ने कहा केआरएसएस और हिंदुत्व में विश्वास रखने वाले लोग ऐसी बातों पर भरोसा नहीं करते।
हिंदुत्व राष्ट्रीय अखंडता विषय पर आयोजित सभा में अपने विचार रखते हुए मोहन भागवत ने कहा कि धर्म संसद में कही गई बातें हिंदू तथा हिंदुत्व की परिभाषा के अनुसार नहीं थी। उन्होंने कहा कि किसी भी समय गुस्से में अगर कोई बात कही जाए तो वह हिंदुत्व नहीं है।
सावरकर का गुणगान करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि सावरकर ने हिंदू समुदाय की एकता एवं उसे संगठित करने की बात कही थी। हालांकि उन्होंने यह बात भगवत गीता के संदर्भ में कही थी। किसी को खत्म करने या नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं। मोहन भागवत ने कहा कि दिसंबर में हरिद्वार में हुई धर्म संसद में मुसलमानों को लेकर आपत्तिजनक बयानबाजी हुई जबकि रायपुर में महात्मा गांधी पर अमर्यादित टिप्पणी की गई। यह संघ एवं हिंदुत्व को स्वीकार्य नहीं है।
भारत क्या हिंदू राष्ट्र बनने की राह पर अग्रसर है ? इस सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने कहा कि हमारे संविधान की प्रकृति हिंदुत्व वाली है। राष्ट्रीय अखंडता के लिए सामाजिक समानता की कदापि जरूरत नहीं है। भिन्नता का मतलब अलगाव नहीं होता। संघ का विश्वास लोगों को बांटने में नहीं बल्कि उनके बीच पाए जाने वाले मतभेदों को दूर करने में है। इस तरह हासिल होने वाली एकता अधिक मजबूत होगी और यह कार्य हम हिंदुत्व के जरिए करना चाहते हैं।