राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, तो यह मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा से पहले रामानंद संप्रदाय को दिया जाना चाहिए: अविमुक्तेश्वरानंद

राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, तो यह मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा से पहले रामानंद संप्रदाय को दिया जाना चाहिए: शंकराचार्य 

अयोध्या में श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले बड़ा धर्म विवाद खड़ा हो गया है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के मंदिर का शैव और शाक्त संप्रदाय के संतों से सरोकार न होने के बायन से बड़ा विवाद खड़ा होने लगा है। सोमवार को पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के प्राण प्रतिष्ठा में शामिल न होने के बयान के बाद मंगलवार को उत्तर पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की नाराजगी भी खुलकर सामने आई।

द हिन्दू के मुताबिक अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा- “अयोध्या में राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में परंपराओं का पालन नहीं किया जा रहा है। भारत में राजा (राजनीतिक नेता) और धार्मिक नेता हमेशा अलग-अलग रहे हैं, लेकिन अब राजनीतिक नेता को धार्मिक नेता बनाया जा रहा है। यह परंपराओं के खिलाफ है और राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि किसी भी मंदिर में निर्माण कार्य पूरा होने से पहले प्रवेश या अभिषेक नहीं हो सकता।

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र (राम मंदिर ट्रस्ट) के महासचिव और वीएचपी के वरिष्ठ नेता चंपत राय के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा- चंपत राय को इस्तीफा दे देना चाहिए और मंदिर को रामानंद संप्रदाय को सौंप देना चाहिए। बता दें कि चंपत राय ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय के लोगों का है, उनका नहीं।

यह बयान ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपतरात के उस बयान के बाद दिए हैं जिसमें उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों का है, शंकराचार्य, शैव और शाक्त का नहीं। इस पर अपनी बात रखते हुए शंकराचार्य ने कहा यदि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों का है तो इस मंदिर को प्रतिष्ठा से पूर्व रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों को दे दिया जाना चाहिए। इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी।

उन्होंने कहा कि चंपतराय के अलावा सभी पदाधिकारियों को इस्तीफा भी देना चाहिए। उन्होंने कहा कि चारों पीठों के शंकराचायों को कोई राग द्वेष नहीं है लेकिन उनका मानना है कि शास्त्र सम्मत विधि का पालन किये बिना मूर्ति स्थापित किया जाना सनातनी जनता के लिये अनिष्टकारक होने के कारण उचित नहीं है।

उन्होंने कहा कि लोगों को यह सोचने की जरूरत है कि अगर प्रधानमंत्री ही सब कुछ कर रहे हैं तो ‘धर्माचार्य’ (धार्मिक शिक्षक) के लिए अयोध्या में करने के लिए क्या बचा है। हालांकि, संत ने पीएम मोदी द्वारा एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में खुद को पेश नहीं करने और ‘सनातन धर्म’ को पूरा सम्मान दिखाने के लिए तारीफ की।

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