हिंडनबर्ग की रिपोर्ट चरित्र हनन की कोशिश: सेबी प्रमुख

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट चरित्र हनन की कोशिश: सेबी प्रमुख

मुंबई: अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग ने एक बार फिर भारतीय बाजार में हलचल मचाते हुए सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच पर गंभीर आरोप लगाए हैं। नई रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने दावा किया है कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धोल बुच का अडानी समूह से संबंध है, और उन्होंने अडानी मनी सायफनिंग स्कैंडल में इस्तेमाल की गई एक गुप्त ऑफशोर कंपनी में निवेश कर रखा था।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट में कहा गया है कि एक व्हिसल ब्लोअर द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों के अनुसार, सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति का एक गुप्त ऑफशोर कंपनी में हिस्सा था, जो अडानी समूह द्वारा मनी सायफनिंग (धन की हेराफेरी) के लिए उपयोग की गई थी। इस रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया है कि सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच के अडानी समूह के साथ घनिष्ठ संबंधों के कारण अडानी समूह को भारतीय बाजार में बिना किसी गंभीर नियामक हस्तक्षेप के संचालन जारी रखने में मदद मिली है।

सेबी प्रमुख का प्रतिक्रिया
इन आरोपों के जवाब में, सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच ने इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है और इसे उनके और उनके परिवार की चरित्र हनन की कोशिश बताया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके वित्तीय मामले पूरी तरह से पारदर्शी हैं और उनके द्वारा किए गए निवेश पूरी तरह से कानूनी और नियमों के अनुसार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह निवेश उनके सेबी में शामिल होने से पहले किया गया था और इसमें कोई गड़बड़ी नहीं है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस मामले ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है। कांग्रेस पार्टी ने इन आरोपों को गंभीरता से लिया है और केंद्र सरकार से मांग की है कि वह सेबी की अडानी समूह की जांच में किसी भी प्रकार के हितों के टकराव को खत्म करने के लिए त्वरित कदम उठाए। कांग्रेस का कहना है कि इस मामले की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया जाना चाहिए ताकि उच्च पदस्थ अधिकारियों और अडानी समूह के बीच किसी भी संभावित मिलीभगत की पूरी तरह से जांच की जा सके।

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और सेबी प्रमुख की प्रतिक्रिया के बाद यह मामला अब और भी गंभीर हो गया है। जहां एक ओर हिंडनबर्ग ने सेबी प्रमुख के ऊपर गंभीर आरोप लगाए हैं, वहीं दूसरी ओर माधबी पुरी बुच ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस मामले में आगे क्या कदम उठाए जाते हैं और राजनीतिक और कानूनी स्तर पर इसका क्या असर पड़ता है।

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