हिमाचल प्रदेश की हार ने बढ़ाई बीजेपी की टेंशन, अगले साल 4 राज्यों में होने वाले चुनाव की चिंता

हिमाचल प्रदेश की हार ने बढ़ाई बीजेपी की चिंता, अगले साल 4 राज्यों में होने वाले चुनाव की चिंता

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिली हार ने भाजपा के लिए गुजरात की ऐतिहासिक जीत के जश्न को फीका कर दिया है। यूपी में उपचुनाव के नतीजे भी बीजेपी के लिए खास अनुकूल नहीं रहे हैं। ऐसे में बीजेपी को 4 राज्यों राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव की चिंता जरूर है।

दरअसल, इन चारों राज्यों में बीजेपी की हालत हिमाचल प्रदेश जैसी है और चारों राज्यों में उसे हार का डर है। जिन राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से दो राज्यों (मध्य प्रदेश, कर्नाटक) में भाजपा और दो राज्यों (राजस्थान, छत्तीसगढ़) में कांग्रेस सत्ता में है। ऐसे में भाजपा को दो राज्यों में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा। भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या चारों राज्यों में पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी है। हिमाचल प्रदेश में भी आंतरिक कलह का भाजपा पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

फिलहाल बीजेपी ‘मिशन 2024’ को भी ध्यान में रख रही है. यानी विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करना चाहती है ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई कठिनाई न हो. लेकिन केंद्र में एक मजबूत सरकार के बावजूद, राज्यों में आंतरिक दरारों ने पार्टी आलाकमान को परेशान दिया है। अगर बीजेपी जल्द ही इस गुटबाजी और आंतरिक कलह से नहीं उबर पाई तो ‘मिशन 2024’ पार्टी के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।

कांग्रेस इस समय राजस्थान में सत्ता में है और भले ही राज्य में गहलोत-पायलट विवाद के कारण पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हो, लेकिन जिस तरह से राज्य सरकार लोगों के कल्याण के लिए काम कर रही है,उसे देखते हुए कांग्रेस के लिए रास्ता मुश्किल नहीं है। लेकिन यहां विपक्षी पार्टी बीजेपी वसुंधरा राजे बनाम गजेंद्र शेखावत-सतीश पुनिया की लड़ाई को लेकर चिंतित है. 2018 में सत्ता से बेदखल होने के बाद से ही बीजेपी राजस्थान में गुटबाजी का दंश झेल रही है।

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच अभी भी मनमुटाव की खबरें आती रहती हैं। प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया के खिलाफ वसुंधरा गुट लगातार मोर्चा खोल रहा है। अगर यह लड़ाई आगे भी जारी रही तो बीजेपी 2023 में भी विपक्ष की भूमिका निभाती नजर आ सकती है। कर्नाटक में गुटबाजी का भी यही हाल है। यहाँ बोम्मई बनाम येदियुरप्पा की लड़ाई चल रही है। चुनाव में सिर्फ दो महीने बचे हैं और कर्नाटक भाजपा में गुटबाजी बढ़ रही है।

हालांकि, कर्नाटक में बीजेपी ने 2019 में ‘ऑपरेशन लोटस’ चलाकर सरकार बनाई और येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन अब जबकि बोम्मई मुख्यमंत्री हैं तो दोनों के बीच अनबन साफ ​​दिखाई दे रही है। अगर पार्टी फरवरी 2023 से पहले बोमई-येदियुरप्पा की लड़ाई को पार नहीं कर पाती है तो कांग्रेस के लिए सत्ता की राह आसान हो जाएगी.

मध्य प्रदेश में भी बीजेपी ने ‘ऑपरेशन लोटस’ के जरिए सत्ता पर कब्जा किया था. कर्नाटक की तरह मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस सत्ता में थी जब बीजेपी ने तोड़-फोड़ कर सदन में सदस्यों की संख्या बढ़ाई थी. फिर शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन इसी दौरान आलाकमान ने नरोत्तम मिश्रा को भी ऊपर उठा दिया और फिर राज्य में गुटबाजी शुरू हो गई।

जब से नरोत्तम गुट सक्रिय हुआ हैं , शिवराज गुट को कुर्सी जाने का डर लगने लगा। अब दोनों गुट एक-दूसरे पर अंदरूनी हमले कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक गुट ऐसा भी है जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गया और उनके समर्थकों की संख्या भी कम नहीं है। दूसरे शब्दों में, मध्य प्रदेश में भाजपा के भीतर तीन गुट दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए सबको साथ लेकर चलना भी कठिन हो गया है |

छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था. यहां कांग्रेस ने भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया और वह लगातार जनता के हित में नई-नई नीतियां बना रहे हैं. इस तरह देखा जाए तो राज्य में कांग्रेस पहले से ही काफी मजबूत है और बीजेपी की अंदरूनी कलह कांग्रेस को और मजबूत करती नजर आ रही है। छत्तीसगढ़ में भाजपा खुद को मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास करती रही है, लेकिन गुटबाजी हर कोशिश को कमजोर कर देती है। यहां पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, पूर्व नेता प्रतिपक्ष धर्म लाल कौशिक और पूर्व अध्यक्ष विष्णुदेव साय की जमात सक्रिय नजर आ रही है।

इसी गुटबाजी को देखते हुए बीजेपी ने इस साल की शुरुआत में छत्तीसगढ़ में बड़ा उलटफेर किया था। प्रदेश प्रभारी से लेकर अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को हटा दिया गया, लेकिन इससे पार्टी के प्रदर्शन पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। ऐसे में भूपेश बघेल पर वार करना मुश्किल नजर आ रहा है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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