सरकार ने भ्रष्टाचार के 72% मामलों में कार्रवाई ही नहीं होने दी
भाजपा शासित कर्नाटक में राज्य सरकार की देखरेख में भ्रष्टाचारियों की चांदी की चांदी है। राज्य सरकार ने पिछले 5 वर्षों में ही भ्रष्टाचार के 310 मामलों में से 72% के खिलाफ कोई मुकदमा या कार्यवाही करने की अनुमति नहीं दी है। यह आंकड़े राज्य सरकार द्वारा विधायिका में उपलब्ध कराए गई जानकारी से सामने आए हैं।
राज्य में लोकायुक्त की जगह भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ही भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करती है। राज्य पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ACB भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने की मुख्य एजेंसी है ।उसे भी राज्य सरकार की ओर से 310 मामलों में से 72% में कोई मुकदमा ना चलाने के आदेश दिए गए हैं।
बता दें कि ACB लोकायुक्त की तरह सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के अधीन काम नहीं करती बल्कि यह राज्य सरकार के अधीन काम करती है। 2015 में आंतरिक भ्रष्टाचार के कारण भ्रष्टाचार की जांच के लिए लोकायुक्त को दी गई पुलिस शक्तियों को छीन लिया गया था।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई ने विधान परिषद में जो आंकड़े रखे हैं उसके अनुसार राज्य पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो एसीबी द्वारा सरकारी अधिकारियों के खिलाफ दर्ज किए गए 310 मामलों में से 248 या 80% मामलों में राज्य सरकार को कार्रवाई के लिए अनुशंसा के साथ चार्जशीट दाखिल ही नहीं की गई है।
विधान परिषद में रखे गए आंकड़ों से पता चलता है कि वर्तमान में सिर्फ 27 मामले ही अदालतों में विचाराधीन है जो कुल मामलों का सिर्फ 9% होता है, जबकि 25 मामलों में जांच के बाद क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई है जो भ्रष्टाचार के कुल मामलों का 8% होता है। जब कि 10 मामलों में जो कुल मामलों का 3% होता है, एक स्टे, एक बरी और एक जांच को रद्द कर दिया गया है।
इस प्रकार देखा जाए तो भ्रष्टाचार के 72% मामलों में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी ही नहीं दी गई है।