केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाये गए कृषि क़ानूनों के खिलाफ जारी किसान आंदोलन को 82 दिन से अधिक का समय हो गया है और देश का किसान दिल्ली की अलग अलग सीमाओं पर डटा हुआ है।
किसान आंदोलन देश के अलग अलग हिस्से में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है लेकिन गाजीपुर बॉर्डर पर पहले के मुकाबले भीड़ हल्की हो गई है, हालांकि मंच से राकेश टिकैत पहले ही किसानों को कह चुके हैं कि एक नजर बॉर्डर पर और एक नजर खेत पर बनाए रखें।
पहले बॉर्डर पर जहां गाड़ियां खड़ी रहती थी वहां आज सन्नाटा पसरा हुआ है, जिन टेंट में किसान सोते नजर आते थे, अब यह तस्वीर भी पलटती हुई नजर आ रही है। बॉर्डर पर चल रहे लंगरों पर जहां पैर रखने की जगह नहीं होती थी, वहां अब इक्का दुक्का लोग ही खाना खाते हुए नजर आ रहे हैं। हालांकि बॉर्डर पर शनिवार और रविवार को किसानों की संख्या बढ़ जाती है। कुछ किसान ऐसे भी हैं, जो सुबह अपने गांव से आते हैं और शाम को फिर से वापस चले जाते हैं।
देश का किसान बॉर्डर पर इकट्ठा हो कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर चुका है , लेकिन आंदोलन को लम्बा जारी रखने के लिए नई रणनीति बनाई गई, जिसके तहत किसानों को मंच से साफ कहा गया है कि एक नजर खेत पर रखो और एक बॉर्डर पर, जिसके बाद किसान गांव भी जाने लगे और कुछ दिन बाद फिर से आने लगे।
वर्तमान स्थिति की बात करें तो बॉर्डर पर किसानों की संख्या कम है, हालांकि यह कहना मुश्किल होगा कि लोग आंदोलन छोड़ कर घर जा रहे हैं या खेती करने के लिए जा रहे हैं। बॉर्डर पर बैठे अन्य किसानों ने अनुसार, ‘जो किसान ट्रैक्टर लेकर गांव जा रहे हैं वह फिर आएंगे। खेत का काम होने के कारण वो लगातार यहां नहीं रुक सकते।’
किसान नेता राकेश टिकैत से जब बॉर्डर पर भीड़ कम होने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि, ‘ऐसा नहीं है कि भीड़ कम हो रही है, किसान आते जाते रहेंगे, उनको अपना खेत भी संभालना है और आंदोलन भी। टिकैत ने आगे कहा, ‘जब तक कृषि कानून वापसी नहीं होंगे तब तक घर वापसी नहीं होगी। किसान सड़कों पर नहीं हैं, लेकिन अपने अपने टेंट में बैठे हुए हैं। हमने सभी किसानों को स्टैंड बाई पर रहने के लिए कहा है, जब जरूरत पड़ेगी हम फिर उन्हें यहां बुला लेंगे।