समलैंगिक विवाह की मान्यता पर सुप्रीम कोर्ट आज सुना सकता है फैसला

समलैंगिक विवाह की मान्यता पर सुप्रीम कोर्ट आज सुना सकता है फैसला

भारत में समलैंगिक विवाह को वैध करने की मांग काफी लंबे समय से उठ रही है। 2018 में भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था। अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी है कि क्या ऐसे जोड़ों को शादी का अधिकार भी मिलेगा या नहीं? इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में करीब 18 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

बता दें कि दुनिया के कुछ देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा चुकी है। सेम सेक्स मैरिज का केंद्र सरकार ने कोर्ट में विरोध किया है। सरकार ने कोर्ट में कहा कि समलैंगिक विवाह की मांग शहरों में रहने वाले एलीट क्लास के लोगों की है।

सुप्रीम कोर्ट में अप्रैल महीने से इस मामले की सुनवाई चल रही है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 10 दिन की सुनवाई के बाद इसी साल 11 मई को मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

रख लिया था।
केंद्र सरकार समान-लिंग वाले जोड़ों के लिए बुनियादी सामाजिक लाभों के संबंध में कुछ चिंताओं को दूर करने के लिए उठाए जा सकने वाले प्रशासनिक कदमों की जांच करने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने पर सहमत हुई थी।

देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिली तो जिन कागजातों पर जीवनसाथी का जिक्र होगा, वहां उन्हें पूरे अधिकार मिल सकते हैं। यही नहीं एलजीबीटीक्यू समुदाय से आने वालों को बच्चा गोद लेने, विरासत से जुड़े अधिकार, पेंशन और ग्रेच्यूटी से जुड़े अधिकार भी मिल सकेंगे।

इससे पहले समलैंगिकता के अपराध की श्रेणी से हटने के बाद देश में कई बीमा कंपनियों ने LGBTQ के लिए स्वास्थ्य बीमा समेत अन्य बीमाओं की सुविधा उपलब्ध कराई है। अब अगर समलैंगिकों को विवाह का अधिकार मिलता है तो उनके लिए सभी तरह के बीमा अपग्रेड हो सकेंगे

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह समलैंगिक जोड़ों को उनकी वैवाहिक स्थिति की कानूनी मान्यता के बिना भी संयुक्त बैंक खाते या बीमा पॉलिसियों में भागीदार को नामांकित करने जैसे बुनियादी सामाजिक लाभ देने का एक तरीका ढूंढे।

राजस्थान, आंध्र प्रदेश और असम की सरकारों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने का विरोध किया है, जबकि मणिपुर, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और सिक्किम सरकार ने कहा है कि इस मुद्दे पर “बहुत गहन और व्यापक बहस” की जरूरत है और तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती।

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