कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने वाली बीजेपी, कांग्रेसी नेताओं से पुर हो गयी

कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने वाली बीजेपी। कांग्रेसी नेताओं से पुर हो गयी

केंद्र और कई राज्यों में सत्तारूढ़ बीजेपी में दूसरे राजनीतिक दलों से आने वालों का प्रभाव बढ़ रहा है। यह सब हाल ही में घोषित बीजेपी प्रदेश अध्यक्षों की सूची में भी देखने को मिला। पार्टी ने 4 में से 3 राज्यों में संगठन की कमान दूसरे दलों से आए नेताओं को सौंपी है। पंजाब और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस से सुनील जाखड़ और डी पुरंदेश्वरी को अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा से बाबूलाल मरांडी को कमान सौंपी गई है। तीनों राज्यों में कुल से 50 से अधिक लोकसभा सीटें हैं।

संगठन ही नहीं, केंद्र के मंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्री पदों पर भी बड़ी संख्या में दूसरे दलों के लोग काबिज हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि या तो भाजपा के पास अच्छे नेताओं की कमी है या वह विपक्ष को कमजोर नहीं करना चाहती। पश्चिम बंगाल में बीजेपी कोटे से विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी हैं, जो 2021 चुनाव से पहले सत्तारूढ़ तृणमूल सरकार में मंत्री थे। 2014 के बाद दूसरी पार्टियों और सरकारों से ज्यादातर लोग बीजेपी में शामिल हुए हैं।

दूसरे दलों से आने वाले नेता मुख्यमंत्री भी बने 

2002 से 15 तक असम में तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे हिमंत बिस्वा सरमा 2015 में भाजपा में शामिल हो गए। 2015 में जब सरमा बीजेपी में शामिल हुए तो उन्हें संगठन का जिम्मा सौंपा गया। टिकटों के बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक की जिम्मेदारी सरमा के कंधों पर डाल दी गई। सरमा की मेहनत रंग लाई और बीजेपी पहली बार असम में सरकार बनाने में कामयाब रही और सर्बानंद सोनोवाल बीजेपी सरकार में मुख्यमंत्री बने। सरमा को सोनोवाल सरकार में मंत्री बनाया गया था। हालांकि, ठीक 5 साल बाद जब बीजेपी दोबारा सत्ता में आई तो सरमा को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई। अघोषित रूप से सरमा के पास उत्तर पूर्वी राज्यों की भी जिम्मेदारी है।

एन बिरेन सिंह- मणिपुर दंगों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह पूर्व कांग्रेसी नेता हैं। बीरन सिंह कांग्रेस की ओकराम एबोबी सरकार में युवा एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री थे। 2016 में शीर्ष नेतृत्व से नाराजगी के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। इसके बाद सिंह भाजपा में शामिल हो गये। 2017 में कांग्रेस ने मणिपुर में 28 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी को 21 सीटें मिली थीं। दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी ने बीरन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। सिंह तब से मणिपुर के मुख्यमंत्री हैं।

माणिक साहा- त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा भी पूर्व कांग्रेसी हैं। पेशे से दंत चिकित्सक साहा सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने से पहले त्रिपुरा मेडिकल कॉलेज में पढ़ाते थे। वामपंथी सरकार के दौरान वह पार्टी की आवाज थे। कांग्रेस में रहते हुए साहा त्रिपुरा क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 2016 में वह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी ने पहले उन्हें चुनाव प्रभारी बनाया और फिर 2020 में बीजेपी ने साहा को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी। 2023 के चुनाव से पहले साहा को बिप्लब देव की जगह मुख्यमंत्री बनाया गया था। साहा के नेतृत्व में पार्टी दूसरी बार सरकार बनाने में सफल रही।

पेमा खांडू- अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी मूलतः कांग्रेसी हैं। 2011 में राजनीति में कदम रखने वाले खांडू बीजेपी से पहले कांग्रेस में रह चुके हैं। 2016 में खांडू पहले पीपुल्स पार्टी में शामिल हुए और बाद में विधायकों के एक समूह के साथ भाजपा में शामिल हो गए। बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया, खांडू के नेतृत्व में बीजेपी को 2019 में भी सफलता मिली। झारखंड और बिहार में भी बीजेपी की कमान दूसरे दलों से आये लोगों के हाथों में रही। हिंदी पट्टी बिहार और झारखंड में बीजेपी लंबे समय से सत्ता में थी। हालांकि संगठन का नेतृत्व दूसरे दलों से आये लोगों के पास था।

गौरतलब है कि झारखंड में बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी को अध्यक्ष बनाया है। हालांकि मरांडी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत बीजेपी से की थी, लेकिन आलाकमान से अनबन के बाद उन्होंने 2006 में अपनी पार्टी बना ली। 2009 में मरांडी की पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रही। 2020 में मरांडी ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया। उस वक्त बीजेपी ने उन्हें विधायक दल का नेता बनाया था, लेकिन तकनीकी कारणों से वह विपक्ष के नेता नहीं बन सके। अब चुनाव से पहले बीजेपी ने उन्हें संगठन की कमान सौंपी है। अगर बिहार की बात करें तो यहां इसी साल मार्च में बीजेपी ने सम्राट चौधरी को अपना अध्यक्ष नियुक्त किया है। 30 साल के राजनीतिक करियर में चौधरी बीजेपी से पहले राजद, जदयू और हम (से) में रह चुके हैं।

बीजेपी ने आंध्र प्रदेश की कमान डी पुरंदेश्वरी और पंजाब की कमान सुनील जाखड़ को दी है. दोनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं। 2021 से पहले सुनील जाखड़ पंजाब कांग्रेस के प्रमुख थे। उन्हें कैप्टन अमरिंदर सिंह का करीबी माना जाता है। जाखड़ के पास राजनीतिक विरासत है। उनके पिता बलराम जाखड़ भी लोकसभा अध्यक्ष रह चुके हैं। सुनील ने 1990 में राजनीति में प्रवेश किया और 2002 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने। उन्होंने 2012-2015 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद भी संभाला। 2017 में उन्हें पंजाब कांग्रेस की कमान मिली। आलाकमान से अनबन के बाद वह 2022 में बीजेपी में शामिल हो गए। हाल ही में पार्टी ने उन्हें पंजाब इकाई का अध्यक्ष बनाया है।

आंध्र प्रदेश की बात करें तो बीजेपी ने यहां की कमान डी पुरंदेश्वरी को सौंपी है। पुरंदेश्वरी मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। उन्होंने अपना इस्तीफा आंध्र के विभाजन के सिलसिले में दिया था। 2014 में पुरंदेश्वरी भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव हार गईं, हालांकि पार्टी ने उन्हें संगठन में शामिल कर लिया। संगठन में कई पदों पर रहने के बाद बीजेपी ने पुरंदेश्वरी को आंध्र की कमान सौंपी है।

कैबिनेट में भी दूसरे दलों के लोग शामिल

दूसरे दलों से आए नारायण राणे, सर्बानंद सोनोवाल, ज्योतिरादित्य सिंधिया और राव इंद्रजीत सिंह केंद्रीय मंत्रिमंडल में हैं। इसी तरह बीजेपी शासित मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल में भी दूसरे दलों से आए लोगों को बड़े विभाग मिले हैं। और ताज़ा उदहारण महाराष्ट्र है कि जहां शिवसेना से बग़ावत करके शिंदे मुख्यमंत्री बन गए। और अब उनकी कुर्सी के लिए एनसीपी से बग़ावत करने अजित पवार ख़तरा बन हैं। यही नहीं अजित पवार अब अपने गुट के विधायकों को भी बड़ा मंत्रालय दिलवाना चाहते हैं।

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