सेना मैदान छोड़ कर भागी तो महिलाओं ने उठाए हथियार अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान के बढ़ते वर्चस्व से आम लोगों का नींद उड़ गई है।
सेना तालिबान से मुकाबला करने के बजाए कई क्षेत्रों से मैदान छोड़ कर भाग खड़ी हुई। अफ़ग़ान सेना तालीआब के मुक़ाबले विफल साबित हो रही है कई मोर्चों पर तो वह भाग भी खड़ी हुई है।
हाल ही में खबर थी कि अफ़ग़ान सेना के 300 जवान तालिबान का मुक़ाबला करने के बजाए ताजिकस्तान भाग गए। ऐसे में इस पड़ोसी मुल्क का भविष्य एक बार फिर से कट्टरपंथी संगठन तालिबान के हाथों में कैद होता दिख रहा है।
एक ओर जहां अफगानिस्तान की सेना विफल साबित हो रही है, वहीं इस देश की महिलाओं ने तालिबान से मुकाबला करने के लिए हथियार उठा लिए हैं।
तालिबान के शासन में देश और खासतौर से महिलाओं को क्या-कुछ झेलना पड़ सकता है यह अफगानिस्तान की महिलाएं अच्छे से जानती हैं। उन्हें तालिबान से किसी भी अच्छाई की उम्मीद नहीं है। न वो पढ़-लिख सकेंगी और न ही घर से बाहर निकल पाएंगी। इस वजह से वे खुद ही तालिबान का सामना करने के लिए अफगान सेना के साथ खड़ी हो गई हैं।
बीबीसी के अनुसार अफगान महिलाओं एवं छात्राओं का मानना है कि उन्हें तालिबान की नीतियों और उसकी सरकार का अच्छे से अंदाजा है। इस वजह से छात्राएं खासतौर से महिलाओं के हथियार उठाने का समर्थन कर रही हैं। अफगानिस्तान में तेजी से हालात बदल रहे हैं और तालिबान के वर्चस्व की दस्तक से हर किसी के मन में डर का माहौल है।
बीते दिनों सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें वायरल हो रही थीं। इन तस्वीरों में महिलाएं हाथों में रॉकेट लॉन्चर, असॉल्ट राइफल समेत कई अत्याधुनिक हथियार लिए हुए दिख रही हैं। उनके हाथों में अफगानिस्तान का झंडा भी है। महिलाएं अफगान नेशनल आर्मी के समर्थन में सड़कों पर हथियार लेकर उतरी हैं।
वे बताना चाहती हैं कि महिलाएं सरकार और सेना के साथ खड़ी हैं। तस्वीरों में दिख रही महिलाएं जोजजान और गौर इलाके की हैं। हालांकि राजधानी काबुल समेत कई अन्य इलाकों में भी प्रदर्शन हुए हैं। महिलाओं का कहना है कि हमारी सरकार अकेले मुकाबला नहीं कर सकती, इसलिए वे दिखाना चाहती हैं कि हम सब एकजुट हैं। उनका कहना है कि 30 साल पहले देश पर जो अंधेरा छाया था, उसे फिर से देश पर नहीं आने देंगे। इसलिए आजादी मिलने तक वे आराम से नहीं बैठेंगी।
इस प्रदर्शन के साथ महिलाओं ने दो संदेश दिए हैं। पहला कि वे अपनी सरकार और सेना के साथ खड़ी हैं। दूसरे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह सभी देशों को बताना चाहती हैं कि उन्हें तालिबान का शासन मंजूर नहीं है।