यूक्रेन के बाद सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे यूरोपीय देशों में बढ़ी चिंता

यूक्रेन के बाद सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे यूरोपीय देशों में बढ़ी चिंता

रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है।

यूक्रेन सीमा से हालांकि रूस ने अपने सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा की है लेकिन फिर भी यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं। यूक्रेन रूस तनाव के बीच पूर्वी यूरोप के 3 देशों में भी व्लादीमीर पुतिन की नीतियों को लेकर खतरा बना हुआ है। कहा जा रहा है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो पूर्वी यूरोप के लातविया, एस्टोनिया और लिथुआनिया पर भी रूसी सेना हमला कर सकती है।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले भी सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे देशों को वापस अपने खेमे में लाने की इच्छा जता चुके हैं। ऐसे में बाकी देशों पर रूस का अधिकार जमाने से पहले यूक्रेन को पहले कदम के रूप में देखा जा रहा है।

यूक्रेन सीमा से अपने सैनिकों को पीछे हटाने की बात करने वाला रूस हालाँकि बार-बार कहता रहा है कि वह यूक्रेन पर हमला करने का इरादा नहीं रखता लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर हमला करते हुए पूर्वी यूरोप की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।

पुतिन पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह हिटलर के स्टाइल में आगे बढ़ रहे हैं। जॉर्जिया और क्रीमिया इसका एक उदाहरण हैं। वह पूर्वी यूरोप के तानाशाहों के साथ भी दोस्ती बढ़ा रहे हैं और उन्हें अपने प्रभाव में लेने की कोशिश कर रहे हैं। जानकार द्वितीय विश्वयुद्ध में नाजियों द्वारा चेकोस्लोवाकिया को अपने अधीन लिए जाने का उल्लेख करते हुए पुतिन और नाजी जर्मनी की चालों की तुलना कर रहे हैं।

सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया को डर है कि यूक्रेन के बाद वह रूस के रडार पर आ सकते हैं। एस्टोनिया विदेश सेवा के प्रमुख निक मारन ने संभावित सैन्य संघर्ष की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि देश में कई तरह के संकट पैदा हो सकते हैं। हालाँकि व्यापक युद्ध की संभावना कम है लेकिन, अगर यूक्रेन पर हमला होता है तो बाल्टिक देशों पर दबाव बढ़ जाएगा।

फॉरेन पॉलिसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बाल्टिक देशों में रहने वाले लोगों को यह डर सता रहा है कि यूक्रेन के बाद उनका नंबर भी आ सकता है। बता दें कि नाटो के सदस्य देश एस्टोनिया, लिथुआनिया और लातविया रूस के साथ सीमा साझा करते हैं। अगर रूस उनमें से किसी एक पर हमला करता है तो उसे नाटो के साथ संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। 2014 से ही नाटो ने बाल्टिक देशों में १-1 हजार से अधिक सैनिक तैनात कर रखे हैं।

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