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इन चुनावों में महंगाई और रोज़गार मुद्दा क्यों नही ?

इन चुनावों में महंगाई मुद्दा क्यों नही है ? इन चुनावों मे रोजगार मुद्दा क्यों नही  ?
कोराना काल मे जहां हर आम आदमी की आमदनी की घटी है वहां महंगाई इस वक्त सुरसा के मुंह की तरह और विशाल हो रही हैं और बचत तो खत्म ही हो गई है……..

क्या यह कोई ढंकी छिपी बात हैं कि सरकार रोजगार के मोर्चे पर बिल्कुल फेल सिद्ध हुई है ? यूपी बिहार में अभी जो रेलवे की परीक्षा देने वाले छात्र हिंसक हो रहे हैं वे बता रहे हैं कि रोज़गार की समस्या किस कदर गहराती जा रही है उसके बावजूद रोजगार चुनावी मुद्दा नही है?

कई दशकों बाद ऐसा किसान आंदोलन हुआ है, क्या किसानों की आमदनी दुगुनी हो गई है ? नही बल्कि डीजल के महंगे होने से कृषि की लागत पहले से ज्यादा बढ़ गई है लेकिन यह मुद्दा चुनाव में क्यो नही हैं,

चरमराती हुई स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा यूपी चुनाव में क्यो नही हैं, क्या गंगा किनारे लाशों के ढेर को भी हम भूल गए हैं ?

यह सारी बाते एक आम आदमी होने के नाते जेहन में आ रही हैं एक बात और भी आ रही है कि ऐसा भी हो सकता है कि इस बार प्रदेश की जनता इन्हीं मुद्दों पर वोट करेगी ? शायद एक तरह का अंडर करंट है जनता मे !….और इसी कारण से सरकार का गुलाम मीडिया पूरी तरह से हमारा ध्यान डायवर्ट कर वही हिंदू – मुस्लिम बाइनरी की तरफ मोड़ दे रहा हैं…..

देखते है 10 मार्च को क्या रिजल्ट आता हैं

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