ट्रंप की ईरान से बातचीत की शर्त, “मिसाइलों की रेंज 500 किलोमीटर तक घटाना: लारीजानी
ईरान के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली लारीजानी ने पश्चिमी देशों की “वादा ख़िलाफ़ी” पर निशाना साधते हुए कहा कि असली समस्या उनकी “समझौते के टेक्स्ट का गलत इस्तेमाल करने की आदत” है। उन्होंने कहा कि “ईरान कभी बातचीत से पीछे नहीं हटा, लेकिन पश्चिम ने बातचीत के बीच में भी हम पर बमबारी की।”
ख़बर ऑनलाइन के मुताबिक़, लारीजानी ने चैंबर ऑफ कॉमर्स के सदस्यों से मुलाक़ात के दौरान “12 दिन की आर्थिक जंग” में उनके योगदान की सराहना की और कहा कि “आपने कारख़ानों को चलाकर राष्ट्र की मजबूती में अहम भूमिका निभाई।” उन्होंने कहा कि इस्लामी गणराज्य की हालिया कार्रवाइयाँ राष्ट्रीय विकास के लिए हैं। “हमारा लक्ष्य सुरक्षा समस्याओं का समाधान और देश के विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाना है।” उन्होंने व्यापारियों के सुझावों को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के निर्णयों में शामिल करने के प्रस्ताव का स्वागत किया।
मेहर एजेंसी के अनुसार, लारीजानी ने विदेश मामलों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को उपयोगी बताया और कहा कि “कुछ वार्ताएँ दूसरी समस्याओं को सुलझाने का ज़रिया बन सकती हैं।” उन्होंने कहा कि “चैंबर ऑफ कॉमर्स एक स्वतंत्र और सिविल संस्थान है, जिस पर सुरक्षा नज़रिया हावी नहीं होना चाहिए। अगर कहीं क़ानून के खिलाफ़ हस्तक्षेप हुआ, तो उससे निपटा जाएगा।”
लारीजानी ने “स्नैप-बैक” मामले पर बताया कि “ईरान ने बातचीत के ज़रिए हर रास्ता आज़माया, लेकिन सामने वाले देशों ने ज़्यादती और रुकावटें पैदा कीं। उदाहरण के लिए, फ्रांस ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी के ज़रिए कहा कि अगर आप एजेंसी से किसी विशेष व्यवस्था पर सहमत हो जाएँ, तो हम स्नैप-बैक की माँग वापस ले लेंगे। हमारे विदेश मंत्री ने मिस्र में यह समझौता साइन भी किया, लेकिन उन्होंने वादा तोड़ दिया।”
उन्होंने आगे बताया कि “बाद में यूरोपीय और रूसी पक्ष से दो नए प्रस्ताव आए, जिन पर ईरान ने कुछ शर्तों के साथ सहमति जताई, और छह महीने की अवधि तय हुई, मगर फिर भी उन्होंने अपनी बात नहीं निभाई और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्नैप-बैक प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।”
लारीजानी ने कहा, “अमेरिकियों ने पहली बार जो शर्त रखी थी, वह किसी भी गैरतमंद इंसान के लिए अस्वीकार्य है — कि ईरान अपने मिसाइलों की रेंज घटाकर 500 किलोमीटर से कम कर दे! क्या यह किसी ईरानी के लिए मान्य हो सकता है? यही असली समस्या है कि वे हमेशा अनुचित मांगें रखते हैं।”
उन्होंने कहा कि “बरजाम में ऐसा तंत्र था कि अगर कोई पक्ष वादा तोड़े तो दूसरा पक्ष प्रतिक्रिया दे सके। सबसे पहले अमेरिका ने समझौता तोड़ा, फिर यूरोपीय देशों ने साथ नहीं दिया, और उसके बाद उन्होंने बमबारी तक की। अब सवाल यह है कि शिकायत कौन करे?”
लारीजानी ने फिर दोहराया, “ईरान ने कभी बातचीत से इनकार नहीं किया, लेकिन पश्चिम ने बातचीत के दौरान भी हमले किए। वे ‘संवाद’ का नारा लगाते हैं, मगर असल में अपने राजनीतिक मक़सद साधते हैं। अगर कोई न्यायपूर्ण और ईरान के हितों की गारंटी देने वाला प्रस्ताव आएगा, तो हम स्वीकार करेंगे। लेकिन हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और सम्मान पर कभी समझौता नहीं करेंगे — जैसे मिसाइल रेंज के मामले में हमने नहीं किया।”
अंत में उन्होंने कहा, “हमारी नीति, ज़ायोनी शासन की अराजकता फैलाने वाली नीतियों से पूरी तरह अलग है। इसलिए हम क्षेत्र के सभी देशों के साथ राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग का स्वागत करते हैं और इस दिशा में आगे बढ़ते रहेंगे।”

