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दारुल उलूम देवबंद के फतवे पर मचा बवाल, एनसीपीसीआर की नज़रें टेढ़ी

दारुल उलूम देवबंद के फतवे पर मचा बवाल, एनसीपीसीआर की नज़रें टेढ़ी

उत्तर प्रदेश के दारुल उलूम देवबंद के फतवों पर समय-समय पर विवाद गहराता रहा है।

दारुल उलूम की ओर से हाल ही में एक फतवा दिया गया था जिस पर उठे विवाद के बाद सहारनपुर प्रशासन की ओर से इस संस्था की वेबसाइट को बंद करने के आदेश दिए गए हैं।

दारुल उलूम देवबंद की ओर से दिए गए इस फतवे को बाल अधिकारों के खिलाफ माना जा रहा है और जिला प्रशासन दारुल उलूम के खिलाफ कार्यवाही के मूड में है। सहारनपुर प्रशासन ने दारुल उलूम की वेबसाइट को बंद करने के आदेश दिए हैं।

इससे पहले सहारनपुर डीएम को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कार्यवाही करने के निर्देश दिए थे। यह पूरा घटनाक्रम उस समय हुआ जब दारुल उलूम देवबंद की ओर से कथित रूप से बच्चों के मुद्दे पर भ्रमित करने वाले फतवे और बयान दिए गए। इस फतवे पर पिछले काफी दिनों से विवाद चल रहा है। अब जब प्रशासन की ओर से दारुल उलूम की वेबसाइट बंद कराई गई तो पूरा मामला खुल कर सामने आ रहा है।

बच्चों और उनकी शिक्षा पर जारी फतवे को लेकर एनसीपीआर में शिकायत दर्ज कराई गई थी जिसके बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बताया कि देश में ऐसी किसी भी संस्थान को चलाने की अनुमति देना सही नहीं है जो खुद को कानून से ऊपर मानते हैं। रही बात बच्चों के अधिकारों की तो कमीशन ऐसा नहीं होने देगा। जब तक इस मुद्दे की जांच चल रही है तब तक वेबसाइट बंद होने का आदेश ठीक है लेकिन जल्द ही जांच पूरी होगी तो संबंधित कार्यवाही करना जरूरी होगा।

प्रियंक ने कहा कि यह पता करना होगा कि इनके फतवों के कारण कितने बच्चों को नुकसान उठाना पड़ा है। एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि हम यह भी पता करेंगे कि इन फतवों के कारण कितने बच्चों को नुकसान पहुंचा है ताकि उन्हें कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जा सके।

प्रियंक कानूनगो के अनुसार दारुल उलूम की ओर से जारी किए गए फतवे में कहा गया था कि गोद लिए गए बच्चे को असल बच्चे का दर्जा नहीं किया जा सकता है जबकि देश में गोद लेने को लेकर सभी धर्मों के लिए एक समान कानून है। देश का कानून किसी धर्म में बच्चे गोद लेने को लेकर भेदभाव नहीं करता। जिस बच्चे को गोद लिया जाता है उसका कोई धर्म नहीं होता। वह किसी भी परिवार में चला जाता है। एक फतवे में तो बच्चों के पीटने की बात को ठीक ठहराया गया है। कहा गया है कि बच्चों की यूनिफॉर्म शरिया के मुताबिक होनी चाहिए।

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